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टिप्पणानि।
[पृ०४५. पं० १८
विचारोंके साथ साथ ही है । उपनिषद् जैसे प्राचीन ग्रन्थमें मी भौतिकवादके बीजका पता चलता है "विज्ञानधन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति । न प्रेत्य संवाऽस्ति।" बृहदा० २.४.१२ ।
प्राचीन जैन और बौद्ध शाखमें भौतिकवादका स्पष्ट उल्लेख है । सूत्र कृ तांग में (१.१. ६-८) कहा है कि कुछ श्रमण-ग्रामण ऐसे हैं जो मानते हैं कि इस विश्वमें पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश ये पांच भूत ही हैं । आत्मा, देही या जीव इन पांचों भूतोंमेसे ही उत्पन होता है। और इन पांचोंके विनाशके साथ ही जीवका मी विनाश हो जाता है।
एक और मतका भी उल्लेख उसीमें (१.१.११-१२) है जिसके अनुसार यह शरीर ही भारमा माना गया है । यह मत मी भौतिकवादविशेष ही है।
इन दोनों मतोंके विषयमें सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कंध (अ० १.) विशेषतः कहा गया है कि ये लोग परलोकको नहीं मानते, पुण्यपापको नहीं मानते, हिंसा-अहिंसाको नहीं मानते और कहते हैं कि शरीर है तब तक जितना भोग किया जा सके करना चाहिए।
बौद्ध ग्रन्थों में जितकेस कम्बल के सिद्धान्त का वर्णन आता है । वह भी भौतिकवादी ही है-उसका कहना था कि न दान है, न यज्ञ है, न होम है, न पुण्य या पाप है। मनुष्य चार महाभूतोंसे बना है । मनुष्य जब मरता है तब उसमेंसे पृथ्वी धातु पृथ्वीमें लीन हो जाती है, अपधातु जलमें, तेजो धातु तेजमें, और वायु धातु बायुमें लीन हो जाती है । तथा इन्द्रियाँ भाकाशमें मिल जाती है। मनुष्य मरे हुए को खाटपर रख कर ले जाते हैं। उसकी निन्दा प्रशंसा करते हैं। और जला देते हैं तब वह भस्म हो जाता है । भास्तिकवाद ठा है। दान. होमादि कार्य मूर्खता मात्र है इस्मादि।
महाभारत में मी भौतिकवादिओंका उल्लेख है। कौटिल्य के गर्यशान में तथा पुरा णों में भी उल्लेख मिलते हैं।
इस दर्शन का मुख्य सूत्रप्रम्य वृहस्पति कृत माना जाता है जो उपलब्ध नहीं । किसी जन्य चार्वाकाचार्य की मी चार्वाक सिद्धान्त प्रतिपादक कृति उपलब्ध नहीं होती। धर्म की ति कत प्रमाण वार्तिक, हरिभद्रकृत षड्दर्शन समुचय और शासवार्ता समुचय तथा माधवाचार्य का सर्वदर्शन संग्रह ही ऐसे अन्य हैं जिनमें चार्वाक दर्शनका संक्षिप्त वर्णन पूर्वपक्ष रूपसे मिलता है।
गायकवाड सिरीजमें तत्वोपप्लव सिंह नामक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है । उसमें चार्वाक दर्शनका मंडन नहीं है किन्तु इतर दार्शनिक संमत प्रमाणों का खण्डन करके कहा गया है कि जब प्रमाण ही सिद्ध नही तब प्रमेयकी सिद्धि कैसे हो सकती है। इस प्रकार एक बैतण्डिकके रूपमें तत्वोपप्लव सिंह कार जयराशिम दार्शनिकोंके बीच उपस्थित होते हैं।
प्रो. राधाकृष्णम् का कहना है कि प्राचीन मंत्रवाद और धार्मिक क्रियाकाण्डके विरोध करने में चार्वाक जैसे भौतिकवादिओंको काफी बल लगाना पड़ा है। कालक्रमसे धार्मिक
सर्वद० पृ०१। २.दीय सामअफलनुस। शांतिपर्व-लो० १४१४,२३३०४३ शस्थपर्वसो०३६१९ । १.विष्णुपुराण-३.१८१४-२६ ।
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