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________________ टिप्पणानि । [पृ० ३८.५० २८सूक्ष्म तत्वके साथ क्या सम्बन्ध है इस प्रश्नको नाना प्रकारसे सोचा है । इसी प्रश्नके विचारमेंसे ही अवयव और अवयवी का विचार भी फलित हुआ है । दश्य जगतके प्रपञ्चको दार्शनिकोंने अपनी अपनी दृष्टिसे माने हुए कुछ ही मूल सूक्ष्म तत्त्वोंमेंसे घटाया है । यह घटना सभीके मतसे एक ही प्रकारसे नहीं है । नै या यि क-वैशेषिक आरम्भवादके पुरस्कर्ता हैं । बौद्ध प्रतीत्यसमुत्पादके द्वारा घटनाको बताते हैं । सांख्य - योग और जैन परिणामवादके द्वारा स्थूल विश्वकी योजना सिद्ध करते हैं । मी मां स क कु मारि ल भी इसी मतका अनुगामी है। और अद्वैतवा दिओं ने ब्रह्मविवर्तवादका आश्रय लिया है। इतनी पूर्वभूमिकाको ध्यानमें रखकर अब हम अवयवीका विचार करें । अवयवीके विषयमें निम्न लिखित बातें विचारणीय हैं। (१) अवयवीकी सत्ता और खरूप (२) अवयवी और प्रत्यक्ष प्रमाण (१) अवयवीकी सत्ताके विषयमें ही नागार्जुन ने आपत्ति की है। उनका कहना है कि उत्पत्ति ही जब नहीं घट सकती तब अवयवीकी सत्ता कैसे संभव है। उन्होंने स्कन्धपरीक्षा में घटपटादि 'रूप' के अस्तित्वका ही निराकरण किया है । और अनीन्धन परीक्षा में उपादानोपादेयभावका निराकरण किया है । अवयवीकी सत्ताकी सिद्धि तब ही हो सकती है जब उपादानोपादेयभाव सिद्ध हो, उत्पत्ति सिद्ध हो और रूपस्कन्ध सिद्ध हो । किन्तु नागार्जुन ने इन तीनोंका विस्तारसे खण्डन किया है अत एव उनके मतमें अवयव और अवयवी वस्तुसत् नहीं किन्तु काल्पनिक हैं। वसुबन्धुको विज्ञानाद्वैत सिद्ध करना था। अत एव उनके लिए बाशार्थका निराकरण अनिवार्य था । बाह्यार्थके विषयमें उन्होंने तीन विकल्प किये हैं "न तदेकंन चाने विषयः परमाणुशः। न.च ते संहता यस्मात् परमाणुन सिध्यति ॥" विज्ञप्ति० का० ११ । इसमें एकका मतलब है अवयवी । इन तीनों पक्षका खण्डन उन्होंने यह कह करके किया है कि इन तीनों पक्षमें परमाणुकी सत्ता अनिवार्य है; और परमाणु तो असिद्ध ही है । क्यों कि "षकेन युगपद्योगात् परमाणोः षडंशता। षण्णां समानदेशत्वात् पिण्डः स्यादणुमात्रकः॥" विज्ञप्ति० का० १२। १.भारम्भवादमादिके विषयमें सूक्ष्म निरूपणके लिये देखो प्रमाणमी. प्रस्तावना पू०६। .." खतो नापि परतो न द्वाभ्यां नाप्य हेतुतः । उत्पना जातु विचम्ते भावा: कचन केचन ॥" माध्य०११। 1. रूपकारणनिर्मुकं न रूपमुपलभ्यते । रूपेणापि न निर्मुकं यते स्पकारणम् ॥ निकारणं पुना रूपं नैव मैवोपपद्यते । तमापगतान् कांबिम विकल्पान् विकल्पवेदन कारणख साशं कार्यमित्युपपद्यते । न कारणस्यासरशं कार्य मित्युपपद्यते ॥" वही ४.१,५,६ । १. "भनीन्धनाम्या व्यापात भामोपादानयोः क्रमः । सबों निरवशेषग सार्थ घटपटादभिः ॥" यही १०.१५ । "बटाइयो दि कार्यकारणभूत अवयवाव विभूना लपलक्षणभूता गुगगुणिभूता वा स्युः । वा माणसूत्रस. लिबकुकालकरव्यायामादयो घटस्य कारणभूताः घटः कार्यभू । कपालादयो नीलादयो वा अवयम्भूता, परोऽवववी ......इखेवं व्यवस्थाप्य अनीन्धनवत् कमो योज्यः।" वही वृ०। ५. "तदेकंवा स्यात् पभावयविरूपं करप्यते बैशेषिकैः।" विज्ञप्ति०भा०११। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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