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१० १६.५० १३] का०९)। अभेद होनेपर भी भेदध्यवहारकी सिद्धि हो सकती है। जैसे-'इस क्नमें तिलकवृक्ष है इस प्रलयमें वन और तिलकका अभेद होने पर भी भेदव्यवहार है, वैसे ही सर्वत्र भेदप्रलय होने पर भी वस्तु अभिन्न-एक हो सकती है-सांख्यत० का०९।
सांख्य ने वेदान्त की तरह अमेदवादका आश्रयण करके समवायका निरास किया है। कित मीमांसक द्रव्य और गुण का, जाति और व्यक्तिका, कार्य और कारणका न एकान्त भेद मानता है न एकान्त अमेद' । अत एव उसने मेदामेदवादी होनेके कारण समवायका निरास न करके उसके खरूप के विषयमें विप्रतिपत्ति उठा कर' समवायका खलप ही बदल दिया । उसका कहना है कि समवायको खतन पदार्थ माननेकी अपेक्षा धर्मधार्मिके खरूप का अभेद मानकर उसी अभिन्नरूपको समवाय कहना युक्त है-"जमेदार समवायोऽस्तु सातपं धर्मधर्मिणोः"-लोकबा० ४.१४९ । समायकी ही महिमासे आधाराय विषयक अमेदप्रतीति होती है । समवायके ही कारण किसी व्यक्तिमें सामान्यका अभेद मालूम होता है। क्यों कि समकायकी यह शक्ति है कि आधेय आधारमें खानुरूपप्रलयकी उत्पत्ति करावे । अत एव आधेयभूत जाति आधारभूत व्यक्ति भी जातिका बोध कराती है।'
मीमांसक संमत इस समवायका दूसरा नाम है रूपलपित्व । बौदों ने इस रूपरूपित्व सम्बन्धकी मीमांसा की है और कहा है कि इस विषयमें मीमांसक सिर्फ नयी वचनभङ्गीका प्रयोग करते हैं उसके खरूपका ठीक निर्वचन नहीं करते-"तलावाचोयुकिनूः समतामात्रमिहरुतम्, न स्वर्षः कबिदुरमेश्यते"-न्यायमं० पृ० २७३।।
जैनों के मतसे मी द्रव्य और गुणका, धर्म और धर्मीका मीमांसकों की तरह मेदामेद ही है । अतएव नै पायिक सम्मत समवायका खण्डन करनेमें वे बौद्धादि सबका साथ देते है। जैनों के मतसे समवाय द्रव्यका एक पर्याय मात्र है
"ततोऽस्येव पर्यायः समवायो गुणादिवत् । वादात्म्पपरिणामेन कचिवमासमाद।"
तत्त्वार्यश्लो० पृ० २० । पर्याय और द्रव्यका मेदामेद है । अमेद इसलिए कि किसी एक व्यके पर्यायको अन्य दव्य में कोई ले नहीं जा सकता
"लामवद्रव्यात् बान्ता मेतुमायक्वत्वस्वाशयविवेचनलस कपना"-तस्वार्थलो० पृ० २१ ।
अतएव पर्यायका द्रव्यसे विवेक अशक्य है । मेद इसलिए कि पर्याप के नष्ट होनेपर मी द्रव्य विधमान रहता है । यदि एकान्त अमेद होता तो पर्यायकी तरह द्रव्य मी नष्ट हो जाता।
द्रव्यकी गुणादिके साथ अविष्वाभावरूपसे रहनेकी अनर्थान्तरभूत असा को ही बैनों ने
१.विमा परमशिवो हिनापदिकान्यको मिच्चिा-- पम् । सामा सदा पुर्वि विशेष समवेद कप" शोकबा०५१,९५२ .ही 1291-8.पसम्बनायेवमाधारेसादुल्लापरिजनपति सारेकोषपचीस .....खैष महिमालाचारमावे खारपाबुरखवा"-शासादी०पू०१०॥
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