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________________ ११४ (३३६) मतिज्ञानके तीन सौ छत्तीस भेद उक्त २८ भेदके प्रत्येक के - १ बहु, २ अल्प, ३ बहुविध ५ क्षित्र, ६ अक्षिप्र, ७ अनिश्रित, ८ निश्रित, ९ असंदिग्ध, ११ ध्रुव और १२ अध्रुव ऐसे बारह भेद करनेसे २८x१२ = ३३६ मतिज्ञानके ३३६ भेदके अतिरिक्त वाचकने प्रथम १६८ जो गेंद दिये है उसमें स्थानांग - निर्दिष्ट अवग्रहादिके प्रतिपक्षरहित छही भेद माननेकी परंपरा कारण हो सकता है । अन्यथा याचकके मतसे जब अवग्रहादि बह्नादि सेतर होते हैं तो १६८ भेद नहीं हो सकते । २८ के बाद ३३६ ही को स्थान मिलना चाहिए । इससे हम कह सकते हैं कि प्रथम अवग्रहादिके बह्लादि भेद नहीं किये जाने लगे सिर्फ छः ही भेदोंने सर्व प्रथम स्थान पाया और बादमें संज्ञा स्मृति मति प्रज्ञा Jain Education International ६८ अवग्रहादिके लक्षण और पर्याय । नन्दी सूत्रमें मतिज्ञानके अवग्रहादि मेदोंका लक्षण तो नहीं किया गया किन्तु उनका स्वरूपबोध पर्यायवाचक शब्दोंके द्वारा और दृष्टान्त द्वारा कराया गया है। वाचकने अवग्रहादि मतिमेदोंका लक्षण कर दिया है और पर्यायवाचक शब्द भी दे दिये हैं। ये पर्यायवाचक शब्द एक ही अर्थ बोधक हैं या नाना अर्थके ! इस विषयको लेकर टीकाकारोंमें विवाद हुआ है। उसका पर्यायोंका संग्रह करनेमें दो बातोंका ध्यान रखा है । करना और सजातीय ज्ञानोंका संग्रह करनेके लिये अर्थात् अर्थपर्याय और व्यञ्जनपर्याय दोनोंका संग्रह मूल यही मालूम होता है कि मूलकार मे ये ये हैं - समानार्थक शब्दोंका संग्रह तद्वाचक शब्दोंका संग्रह भी करना किया गया है। ईहा अवाय यहां नन्दी और उमाखातिके पर्याय शब्दों का तुलनात्मक कोष्ठक देना उपयुक्त होगा मतिज्ञान अवग्रह नन्दी - तस्वार्थ नन्दी आभिनिबोधिक,, अवग्रह 7 " ग्रह धारणा तत्वार्थ नन्दी तत्वार्थ नन्दी तश्वार्थ नन्दी तवार्थ अवाय X धारणा ईहा x अवग्रहणता ग्रहण ईहा अवर्तनता x धरणा "" अपोह X उपधारणता अवधारण आभोगनता x प्रत्यावर्तनता x स्थापना x विमर्श X श्रवणता x अपाय अपाय प्रतिष्ठा x मार्गणा x अवलम्बनता गवेषणा x मेधा X " 19 अवमहाविके लक्षण और पर्याय । ** " X चिंता X विमर्श x मार्गणा x गवेषणा आलोचन चिंता X x X x x X X x बुद्धि x कोष्ठ x विज्ञान X X ऊहा तर्क x परीक्षा x विचारणा x जिज्ञासा x ४ अल्पविध, १० संदिग्ध, होते हैं । किये जाते थे । जबसे १२ मेदोंने / For Private & Personal Use Only अपगम X अपनोद x अपव्याध x अपेत अपगत अपविद्ध अपनुल्य = x x x x x प्रतिपत्ति अवधारण अवस्थान निश्चय अवगम x rasta www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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