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________________ હું निम्नलिखत श्लोक में धर्मप्रभावकों में वादीको भी स्थान मिला है । "प्रवचनी धर्मकथी वादी नैमित्तिकस्तपस्वी च । freera कविः प्रवचनमुद्भावयन्त्येते ॥” कभी कभी ध्यान खाध्याय छोडकर ऐसे वादिओंको वादकथामें ही लगना पडता था जिससे वे परेशान भी थे और गच्छ छोडकर किसी एकान्तस्थान में जानेकी वे सोचते थे । ऐसी स्थिति में गुरु उन पर प्रतिबन्ध लगाते थे कि मत जाओ। फिर भी वे स्वच्छन्द होकर गष्ठको छोड़कर चले जाते थे। ऐसा बृहत्कल्पके भाष्यसे पता चलता है - गा० ५६९१,५६९७ इमादि । ६ २ कथा । स्थानांगसूत्र में कथाके तीन मेद बताये हैं। वे ये हैं - "तिविहा कहा - अत्थकहा, धम्मका कामकहा । " सू० १८९ । इन तीनों में धर्मकथा ही यहाँ प्रस्तुत है । स्थानांगमें ( सू० २८२) धर्मकथाके मेदोपमेदोंका औ वर्णन है उसका सार नीचे दिया जाता है । धर्मकथा १ आक्षेपणी १ इहलोकमें २ १ आचाराक्षे ० Jain Education International २ व्यवहारा० ३ प्रज्ञप्ति ४ दृष्टिवाद ४ निर्वेदनी - किये 99 दुश्चरितका कथा । 35 २ विक्षेपणी १ खसमय कह कर परसमय कथन २ परसमयकथनपूर्वक 39 ३ परलोकमें ४ "" 99 "" इसी प्रकार सुचरितकी मी चतुर्भगी होती है। स्वसमय स्थापन ३ सम्यग्वादके कथनपूर्वक मिथ्यावादकथन ४ मिथ्यावादकथनपूर्वक सम्यग्वादस्थापन फल " 39 इस लोक में परलोकमें इस लोक में परलोकमें ३ संवेजनी १ इहलोकसं० २ परलोकसं० ३ स्वशरीरसं० ४ परशरीरसं० For Private & Personal Use Only दुःखदायी 19 "" 'इनमेंसे वादके साथ संबन्ध प्रथमकी दो धर्मकथाओंका है। संवेजनी और निर्वेदनी कथा तो घही है जो गुरु अपने शिष्यको संवेग और निर्वेदकी वृद्धिके लिये उपदेश देता है । आक्षेपणी कथा जो मेद हैं उनसे प्रतीत होता है कि यह गुरु और शिष्यके बीच होनेवाली धर्मकथा है । १ बृहद्० डी० गा० १०९८ में उद्धत । 33 www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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