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परण्णयसुते
१३९१. दट्ठूण वि अप्पसुहं माणुस्सं गदोससंजुत्तं । सुड्डु विहियमुवइ कज्जं न मुणेइ मूढजणो ॥ ६४२ ॥ १३९२. जह नाम पट्टणगओ संते मुलम्मि मूढभावेणं ।
न लहंति नरा लाहं माणुसभावं तहा पत्ता || ६४३ ॥ ५ १३९३. संपत्ते बल - विरिए सब्भावपरिक्खणं अजाणता ।
न लहंति बोहिलाभं दुग्गइमग्गं च पार्वति ॥ ६४४ ॥ १३९४. अम्मा- पियरो भाया भज्जा पुत्ता सरीर अत्थो य ।
भवसागरम्मि घोरे न हुंति ताणं च सरणं च ॥ ६४५ ॥
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१३९५. न वि माया, न वि य पिया, न पुत्त- दारा, न चेव बंधुजणो । नेवि य धणं, न वि धन्नं दुक्खमुन्नं उवसमेंति ॥ ६४६ ॥ १३९६. जइया सयणिज्जगओ दुक्खत्तो सयण-बंधुपरिहीणो । उव्वत्तइ परियत्तइ उरगो जह अग्गिमज्झम्मि || ६४७ ॥ १३९७. असुइ सरीरं रोगा जम्मणसयसाहणं छुहा तन्हा ।
उन्हं सीयं वाओ पहाभिघाया य णेगविहा ।। ६४८ ॥ १५ १३९८. सोग - जरा - मरणाई परिस्समो दीणया य दारिदं ।
तह य पियविप्पओगा अप्पियजणसंपओगा य ॥ ६४९ ॥ १३९९. एयाणि य अण्णाणि य माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि । पञ्चक्खं पिक्खंतो, को न मरइ तं विचिंततो ? ॥ ६५० ॥ १४००. लद्धूण वि माणुस्सं सुदुलहं केइ कम्मदोसेणं ।
साया- सुहमणुरत्ता मरणसमुंद्देऽवगाहिंति ॥ ६५१ ॥ १४०१. तेण उ इहलो सुहं मोत्तूणं माणसंसियमईओ ।
चिरतिक्खमरणभीरू लोगसुईकरणदोगुंछी ॥ ६५२ ॥
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१४०२. दारिद्द- दुक्ख-वेयण-बहुविहसी उन्ह-खु-प्पिवासाणं । अरइ-भय-सोग- सामिय-तक्कर - दुब्भिक्खमरणाई || ६५३ ॥
१. व धणं सं० ॥ २. 'मुद्दे विगा' जे० पु० ॥
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