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५. मरणविभत्तिपइण्णयं १३८०. जाहे य पावियव्वं इह-परलोए य होइ कल्लाणं ।
ता एवं जिणकहियं पडिवज्जइ भावओ धम्मं ॥ ६३१॥ १३८१. जह जह दोसोवरमो, जह जह विसएसु होइ वेरग्गं ।
तह तह विण्णायव्वं आसन्नं से पयं परमं ११ ॥ ६३२ ॥ १३८२. दुमो भवकंतारे भममाणेहिं सुचिरं पणद्वेहिं ।
दिट्ठो जिणोवदिट्ठो सोग्गइमग्गो कह वि लद्धो ॥ ६३३॥ १३८३. माणुस्स-देस-कुल-काल-जाइ-इंदियबलोवयाणं च ।
विन्नाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूणं ॥ ६३४ ॥ १३८४. पत्तेसु वि एएसुं मोहस्सुदएण दुल्लहो सुपहो ।
कुपहबहुयत्तणेण य विसयसुहाणं च लोभेणं ॥ ६३५॥ १३८५. सो य पहो उवलद्धो जस्स जए बाहिरो जणो बहुओ।
संपत्ति चिय न चिरं, तम्हा न खमो पमाओ मे ॥ ६३६ ॥ १३८६. जह जह दढप्पइण्णो समणो वेरग्गभावणं कुणइ ।
तह तह असुमं आयवहयं व सीयं खयमुवेइ ॥ ६३७॥ १३८७. एगअहोरत्तेण वि दढपरिणामा अणुत्तरं जंति ।
कंडरिओ पोंडरिओ अहरगई-उड्ढगमणेसुं १२ ॥ ६३८॥ १३८८. बारस वि भावणाओ एवं संखेवओ समत्ताओ।
भावमाणो जीवो जाओ समुवेइ वेरग्गं ॥ ६३९॥ १३८९. भाविज भावणाओ, पालिज वयाई रयणसरिसाई।
पडिपुण्णपावखमणे अइरा सिद्धिं पि पाविहिसि ॥ ६४०॥
[गा. ६४१-५९ निव्वेओवएसपुव्वयं पंडियमरणनिरूवणं] १३९०. कत्थइ सुहं सुरसमं, कत्थइ निरओवमं हवइ दुक्खं ।
कत्थइ तिरियसरिच्छं, माणुसजाई बहुविचित्ता ॥ ६४१॥
१. विजाणयाहि मा सा०॥
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