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________________ १८ स्थानाङ्गसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन उनका हृदय से आभार व्यक्त किया । वृत्ति का ग्रन्थमान चौदह हजार दौ सौ पचास श्लोक है । प्रस्तुत वृत्ति सन् १८८० में राय धनपतसिंह द्वारा कलकत्ता से प्रकाशित हुई । सन् १९१८ और सन् १९२० में आगमोदय समिति बम्बई से, १९३७ में माणकलाल चुन्नीलाल अहमदाबाद से और गुजराती अनुवाद के साथ मुन्द्रा (कच्छ) से प्रकाशित हुईं। केवल गुजराती अनुवाद के साथ सन् १९३१ में जीवराज घेलाभाई दोसी ने अहमदाबाद से, सन् १९५५ में. पं. दलसुखभाई मालवणिया ने गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद से स्थानांग समवायांग के साथ में रूपान्तर प्रकाशित किया है। जहाँ-तहाँ तुलनात्मक टिप्पण देने से यह ग्रन्थ अतीव महत्त्वपूर्ण बन गया है । संस्कृतभाषा में संवत् १६५७ में नगर्षिगणि तथा संवत् १७०५ में सुमतिकल्लोल और हर्षनन्दन ने भी स्थानांग पर वृत्ति लिखी है तथा पूज्य घासीलाल जी म. ने अपने ढंग से उस पर वृत्ति लिखी है । वीर संवत् २४४६ में हैदराबाद से सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद के साथ आचार्य अमोलकऋषि जी म. ने सरल संस्करण प्रकाशित करवाया । सन् १९७२ में मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' ने आगम अनुयोग प्रकाशन, साण्डेराव से स्थानांग का एक शानदार संस्करण प्रकाशित करवाया है, जिसमें अनेक परिशिष्ट भी हैं । आचार्यसम्राट आत्मारामजी म. ने हिन्दी में विस्तृत व्याख्या लिखी। वह आत्माराम-प्रकाशन समिति, लुधियाना से प्रकाशित हुई । वि.सं. २०३३ में मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद तथा टिप्पणी के साथ जैन विश्वभारती से इसका का प्रशस्त संस्करण भी प्रकाशित हुआ है । - देवेन्द्रमुनि शास्त्री स्थानकवासी जैन स्थानक, राखी (राजस्थान) ज्ञानपंचमी २/११/१९८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001029
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages588
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
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