SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [सू० २८२] चतुर्थमध्ययनं चतुःस्थानकम् । द्वितीय उद्देशकः । ३५५ परानपि त्रासयतीति त्रासी च भवेन्मृगो नाम गजभेद इति, एएसिं गाहा भो गाहा कण्ठ्ये । तथा दंतेहि हणइ भद्दो मंदो हत्थेण आहणइ हत्थी । गत्ताधरेहि य मिओ संकिन्नो सव्वओ हणइ ॥ [ ] त्ति । [सू० २८२] [१] चत्तारि विकहाओ पन्नत्ताओ, तंजहा - इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा । इत्थिकहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - इत्थीणं जाइकहा, इत्थीणं कुलकहा, इत्थीणं रूवकहा, इत्थीणं णेवत्थकहा । भत्तकहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - भत्तस्स आवावकहा, भत्तस्स णिव्वावकहा, भत्तस्स आरंभकहा, भत्तस्स निट्ठाणकहा । देसकहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा- देसविहिकहा, देसविकप्पकहा, 10 देसच्छंदकहा, देसनेवत्थकहा । रायकहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - रन्नो अतिताणकहा, रन्नो निज्जाणकहा, रन्नो बलवाहणकहा, रन्नो कोस- कोट्ठागारकहा । [२] चउव्विहा कहा पन्नत्ता, तंजहा - अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेगणी, निव्वेगणी । 5 Jain Education International अक्खेवणी कहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - आयारक्खेवणी, ववहारक्खेवणी, पन्नत्तिक्खेवणी, दिट्ठिवात अक्खेवणी । विक्खेवणी कहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - ससमयं कहेति, ससमयं कत्ता परसमयं कहेति १, परसमयं कहेत्ता ससमयं ठावतित्ता भवति २, सम्मावतं कहेति, सम्मावातं कहेत्ता मिच्छावातं कहेति ३, मिच्छावातं कहेत्ता 20 सम्मावतं ठावतित्ता भवति ४ । संवेगणी कथा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - इहलोगसंवेगणी, परलोगसंवेगणी, आतसरीरसंवेगणी, परसरीरसंवेगणी । णिव्वेगणी कहा चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा - इहलोगे दुच्चिन्ना कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ९, इहलोगे दुच्चिन्ना कम्मा परलोगे 25 For Private & Personal Use Only 15 www.jainelibrary.org
SR No.001028
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages579
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy