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________________ ४८ किञ्चत् प्रास्ताविकम् द्वितीय विभाग में ४-६ अध्ययन, तृतीय विभाग में ७-९ अध्ययन और चतुर्थ विभाग में १० वाँ अध्ययन एवं अनेक परिशिष्ट आदि प्रकाशित करने की विचारणा है । स्थानांगटीका में अन्यग्रंथों से उद्धृत किये गये हजारो पाठ हैं। उनका मूल स्थान खोजना एवं उनका विवरण भी समझना अति परिश्रम साध्य है । इसलिये इस प्रथम विभाग में गाथाविवरण, परिशिष्ट (टिप्पन आदि) भी जोड दिया है । जिज्ञासु इन सभी को पढ़ें यही विज्ञप्ति । परमकृपालु अनन्त अनन्त उपकारी अरिहंत परमात्मा एवं मेरे परम उपकारी परमपूज्य सद्गुरुदेव एवं पिताश्री मुनिराजश्री भुवनविजयजी महाराज की कृपा से ही यह कार्य संपन्न हुआ है। इस महान कार्य में मेरे शिष्य मुनिराजश्री धर्मचन्द्रविजयजी, पुंडरीकरत्नविजयजी, धर्मघोषविजयजी ने बहुत सहयोग दिया है । धार्मिक, सामाजिक, राजकीय आदि विविध क्षेत्रों मे अत्यंत अग्रेसर, दीर्घदर्शी, सूक्ष्म चिंतक समाज तथा जिन शासन के परम हितैषी तथा श्री जैन शासन की उन्नति जिनका प्राण था ऐसे श्री जैन श्वे. नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ के अध्यक्ष श्री पारसमलजी भंसाली हमें यहाँ नाकोडा तीर्थ में चातुर्मास करने हेतु लाए और नाकोडा तीर्थ में विशाल प्राचीन शास्त्रसंग्रह तथा संशोधन केन्द्र बनवाने की उनकी उत्कृष्ट भावना थी । इस भावना के कारण आजभी यहाँ कार्य चल रहा है । किंतु हृदय की बाईपास सर्जरी करवाने के पश्चात् मुंबई में २६ - ९ - २००२ के दिन उनका आकस्मिक स्वर्गवास होने से यह सटीक स्थानांगसूत्र के प्रकाशन को देखने के लिये हमारे बीच मौजूद नहीं रहे, जिसकी कमी हमें बहुत - बहुत खटक रही हैं । उन्होंने हमको जो अत्यंत उदारता तथा उत्साह से यहाँ संशोधन करने की अनुकुलता प्रदान की वह अविस्मरणीय रहेगा । इसलिये उनको बहुत बहुत अभिनंदन व धन्यवाद । मेरी परमोपकारिणी शतवर्षाधिकायु परमपूज्य माता साध्वीजी (जिन का मेरे उपर अपार आशीर्वाद है) श्री मनोहर श्रीजी महाराज की शिष्या परमसेविका साध्वीजी श्री सूर्यप्रभाश्रीजी महाराज की शिष्या साध्वीजी श्री जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी ने इस विराट संशोधन कार्य में अति अति सहयोग दिया है । इस कार्य में जिन्हों ने भिन्न भिन्न रूप से सहयोग दिया है, उन सबको मेरा हार्दिक अभिनंदन एवं धन्यवाद । प्रभुकी असीम कृपा से ही संपन्न इस ग्रंथको प्रभु के करकमलों में समर्पण कर आज में धन्यता का अनुभव कर रहा हूँ । श्री जैन श्वे०नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालंकारP.O. मेवानगर, Via बालोतरा, पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्यपूज्यपादसद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी जिला - बाडमेर, राजस्थान. जम्बू विजय: विक्रम सं० २०५९, मार्गशीर्षशुक्लाष्टमी, गुरुवार, ता. १२-१२-२००२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001027
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages828
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size39 MB
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