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________________ १८६ णायाम कहंग सुत्ते पढमे सुयक्खंधे [सू ७७ तरं मल्लिएस अरहतो निक्खममाणस्स अप्पेगतिया देवा मिहिलं आसिय अभितर , १. " आसिय अब्भंतर वास विहि गाहा इति 'अप्पेगतिया देवा मिहिलं रायहाणि सन्भितरबाहिरं भासियसम्मज्जियसंमट्ट सुइरत्थं तरावणवी हियं करेंति, अप्पेगइया देवा मंचाइमंचकलियं करेंति' इत्यादेर्मेघकुमारनिष्क्रमणोक्तनगरवर्णकस्य तथा 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वार्सिसु एवं सुवन्नवासं वासिंसु, एवं रयण-वहर- पुण्फ मल्ल-गंध- पुण्ण - आभरणवासं वासिंसु ' इत्यादेर्व समूहस्य तथा 'अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाईसु, एवं सुवण्णविहिं भाईसु' इत्यादेर्विधिसमूहस्य तीर्थ करजन्माभिषेकोत्तस्य संग्रहार्थं याः क्वचित् गाथाः सन्ति ताः अनुसृत्य सूत्रमध्येयम् यावत् 'अप्पेगइया देवा आधावेंति, परिधावेंति' इत्येतदवसानमित्यर्थः । इदं च राजप्रभकृतादौ द्रष्टव्यमिति” – अटी० ॥ " तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स महया महया इंदाभिसेर वट्टमाणे अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं नच्चोययं नातिमट्टियं पविरल - कुसियरेणुविणासगं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासति अप्पेगतिया देवा हयरयं नहरयं भट्टस्यं उवसंतरयं पसंतस्यं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमानं आसियसंमजिओवलितं सुइ-संमह रत्थंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरिया विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरिया विमाणं णाणाविहरागोसियं शयपडागाइपडागमंडियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं लाउलोइयमहियं गोसीससरसरतचंदण - दद्दर-दिष्ण पंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं उवचियचंद कलर्स चंद-ड-कय-तोरण- पडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं असत्तोसतविउल-वट्ट-वग्घारिय-मल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं पंचवण्णसुरभिमुकपुष्फ पुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्क तुरुकधूवमवमवंत गंधुद्धूयाभिरामं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमानं सुगंधगंधियं गंधवट्टिभूतं करेंति १ । अप्पेगतिया देवा हिरण्णवासं वासंति, सुवण्णवासं वासंति, रययवासं वासंति, वइरवासं वासंति, पुष्पवास वासंति, फलवासं वासंति, मल्लवासं वासंति, गंधवासं वासंति, चुण्णवासं वासंति, आभरणवास वासंति २। अप्पेमतिया देवा हिरण्यविहिं भाएंति, एवं सुवन्नविहिं भाएंति, विहिं [वयरवि]ि पुप्फविहिं फलविहिं मल्लविहिं चुण्णविहिं वत्थविहिं गंधविहिं भाएंति, ३ । ताथ अप्पेगतिया देवा आभरणविहिं भाएंति, अप्पेगतिया चउव्विहं वाइतं वाइंति-ततं विततं घण सिरं । अप्पेगइया देवा चउब्विहं गेयं गायंति, तंजहा - उक्वित्तायं पायत्तायं मंदायं रोइतावसाणं ४| अप्पेगतिया देवा दुयं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया विलंबियणट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा दुतविलंबियं णट्टविहिं उवसेंति, एवं अप्पेगतिया अंचियं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा आरभडं भसोलं आरभडभसोलं उप्पायनिवायपवत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भतसंभतणामं दिव्वं विहिं उवदंसें ति ५ । अप्पेगतिया देवा चउव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तंजा - दिइंतियं, पाउंतियं, सामंतोवणिवाइयं, लोग अंतोमज्झावसाणियं । अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीर्णेति अप्पेगतिया भासेंति, अप्पेगतिया हक्कारेंति, अप्पेगतिया विणंति, तंडवेंति, अप्पेगइया बर्गति अप्फोर्डेति, अप्पेगतिया अप्फोडेंति वग्गति, अप्पेगतिया तिवई छिंदंति ६ । अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया रहघणघगाइयं करेंति, अप्पेगतिया हयहेसिय-हत्थिगुलगुला इय रहघणघणाइयं करेंति ७ । अप्पेगतिया उच्छलेंति, अप्पेगतिया पोच्छलेति, अप्पेगतिया उक्तिट्ठियं करेंति, अप्पेगतिया उच्छलेति पोच्छलेति, अप्यगतिया तिन्नि वि ८। अप्पेगतिया उवयंति, " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001021
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Dharmachandvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1990
Total Pages737
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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