________________
एक अनुशीलन
८५ प्राचीन ग्रंथों के आधार से पाश्चात्य चिन्तक डा० ब्लूमफील्ड आदि ने दोहद के सम्बन्ध में कुछ चिन्तन किया है। कला : एक विश्लेषण
जब मेघ कुमार आठ वर्ष का हो गया तब शुभ नक्षत्र और श्रेष्ठ लग्न में उसे कलाचार्य के पास ले जाया गया। प्राचीन युग में शिक्षा का प्रारंभ आठ वर्ष में माना गया, क्योंकि तब तक बालक का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाता था। भगवती और अन्य आगमों में भी इसी उम्र का उल्लेख है । कथाकोश-प्रकरण, ज्ञानपंचमी कथा, कुवलयमाला ३ आदि में भी इसी उम्र का उल्लेख है। स्मृतियों में पाँच वर्ष की उम्र में शिक्षा देने का उल्लेख है। पर आगमों में आठ वर्ष ही बताया है।
उस युग में विविध कलाओं का गहराई से अध्ययन कराया जाता था। पुरुषों के लिए बहत्तर कलाएँ और स्त्रियों के लिए चौसठ कलाएँ थीं। केवल ग्रंथों से ही नहीं, उन्हें अर्थ और प्रयोगात्मक रूप से भी सिखलाया जाता था। वे कलाएँ मानव की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के पूर्ण विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी थीं। मानसिक विकास उच्चतम होने पर भी शारीरिक विकास यदि न हो तो उसके अध्ययन में चमत्कृति पैदा नहीं हो सकती।
प्रस्तुत आगम में बहत्तर कलाओं का उल्लेख हुआ है। बहत्तर कलाओं के नाम समवायांग, राजप्रश्नीय, औषपातिक और कल्पसूत्र सुबोधिका टीका में भी प्राप्त होते हैं। पर ज्ञातासूत्र में आई हुई कलाओं के नामों में और उन आगमों में आये हुए नामों में कुछ अन्तर है। तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने हेतु हम यहाँ दे रहे हैं। ज्ञातासूत्र के अनुसार ५ (१) लेख (२) गणित (३) रूप (४) नाट्य (५) गीत (६) वादित्र (७) स्वरगत (८) पुष्करगत (९) समताल (१०) द्यूत (११) जनवाद (१२) पाशक (पासा) (१३) अष्टापद (१४) पुरःकाव्य (१५) दकमृत्तिका (१६) अन्नविधि (१७) पानविधि (१८) वस्त्रविधि (१९) विलेपन विधि (२०) शयन विधि (२१) आर्या (२२) प्रहेलिका (२३) मागधिका (२४) गाथा (२५) गीति (२६) श्लोक (२७) हिरण्य युक्ति (२८) स्वर्णयुक्ति (२९) चूर्णयुक्ति (३०) आभरणविधि (३१) तरुणीप्रतिकर्म (३२) स्त्रीलक्षण (३३) पुरुषलक्षण (३४) हयलक्षण (३५) गजलक्षण (३६) गोलक्षण (३७) कुक्कुटरक्षण (३८) छत्रलक्षण (३९) दण्डलक्षण (४०) असिलक्षण (४१) मणिलक्षण (४२) काकणीलक्षण (४३) वास्तुविद्या (४४) स्कन्धावारमान (४५) नगरमान (४६) व्यूह (४७) प्रतिव्यूह (४८) चार (४९) प्रतिचार (५०) चक्रव्यूह (५१) गरुडव्यूह (५२) शकटव्यूह (५३) युद्ध (५४) नियुद्ध (५५) युद्धनि युद्ध (५६) दृष्टियुद्ध (५७) मुष्टियुद्ध (५८) बाहुयुद्ध (५९) लतायुद्ध (६०) इषुशास्त्र (६१) छरुप्रवाद (६२) धनुर्वेद (६३) हिरण्यपाक (६४) स्वर्णपाक (६५) सूत्रखेड (६६) वस्त्रखेल (६७) नालिका खेल (६८) पत्रच्छेद्य (६९) कटच्छेद्य (७०) सजीव (७१) निर्जीव (७२) शकुनिरुत ।
८९. The Dohado or Craving of Pregnant Women-Journal of American Oriental Society. Vol. IX, Part 1st, Page 1-24॥९०. भगवती-अभयदेव वृत्ति ११-११, ४२९, पृ. ९९९॥ ९१. कथाकोश प्रकरण पृ.८॥ ९२. ज्ञानपंचमी वहा ६-९२॥ ९३. कुवलयमाला २१, १२-१३॥ ९४. (क) डी. सी. दासगुप्त 'द' जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' पृ. ७४, (ख) एच. आर. कापडिया ‘द जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' पृ. २०६ ॥ ९५. ज्ञातासूत्र पृ. ४८, (प्रस्तुत संस्करण)॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org