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________________ सु० २४-२८] जमालिअहियारो पसत्थारो २ लेच्छई २ माहणा २ इन्भा २ जंहा उववाइए जाव सत्थवाहप्पभिइओ ण्हाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए जाव निग्गच्छंति १ एवं संपहेइ, एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेति, कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेत्ता एवं वयासि-किं णं देवाणुप्पिया ! अन्ज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति ? २५. तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ० समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल. जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-'णो खलु देवाणुप्पिया ! अन्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सवण्णू सव्व- १० दरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं एए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव निग्गच्छंति'। २६. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमद्वं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, कोडंबियपुरिसे सदावइत्ता एवं १५ वयासी—खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह। २७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पञ्चप्पिणंति । २८. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मजणघरे तेणेव उवा- २० १. 'जहा उववाइए त्ति, तत्र चेदमेवं सूत्रम्-माहणा भडा जोहा मलई लेच्छई अन्ने य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ त्ति' अवृ० । दृश्यतां औपपातिकसूत्रस्य २७ तमं सूत्रम् प०५७-५९ आगमो० आवृत्ति ॥ " २. “जहा उववाइए त्ति अनेन चेदं सूचितम्कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सिरसाकंठेमालाकडा इत्यादि" अवृ० । औपपातिकसूत्रे पत्रम् ५९ सू० २७॥३. "इह यावत्करणादिदं दृश्यम्-अप्पेगइया पूअणवत्तियं एवं सकारवत्तियं सम्माणवत्तियं कोउहल्लवत्तियं असुयाई सुणिस्सामो, सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो, मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया हयगया एवं गय-रह-सिबिया संदमाणियागया, अप्पेगइया पायविहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महता उक्किटिसीहणायबोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा खत्तियकुंडग्गामस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं ति" अवृ०॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001018
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1974
Total Pages548
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_bhagwati
File Size9 MB
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