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________________ ३ एकादश अध्याय ( द्वितीय अध्याय) ४३ 'मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपञ्चकम् । अष्टौ मूलगुणानाहुऍहिणां श्रमणोत्तमाः॥ [ रत्न. श्रा., ६६ श्लो. ] 'स्मरेत्' एतेन सर्वत्र यमनियमादौ मुक्त्यङ्गे स्मरणपरेण भवितव्यमिति लक्षयति । द्यूतमित्यादि। इहैव-अस्मिन्नेव स्वाम्युक्ताष्टमूलगुणपक्षे मधुस्थाने द्यूतं स्मरेत् । तथा चोक्तं महापुराणे 'हिंसासत्यस्तेयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात् । द्यूतान्मांसान्मद्याद्विरति गृहिणोऽष्ट सन्त्यमी मूलगुणाः ॥' [ चारित्रसार., पृ. ६१ ] ॥३॥ त्यागकर मद्य, मांस और द्यूत तथा स्थूल हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल अब्रह्म और स्थूल परिग्रहका त्याग ये आठ मूल गुण ग्रन्थकारने महापुराणके मतसे कहे हैं। और प्रमाण रूपसे श्लोक भी उद्धृत किया है। किन्तु महापुराणके मुद्रित संस्करणोंमें वह श्लोक नहीं मिलता। चारित्रसारमें यह श्लोक उद्धृत है और वह भी महापुराणके नामसे । ज्ञात होता है, आशाधरजीने भी उसे वहींसे उद्धृत किया है । महापुराण में तो व्रतावतरण क्रिया में मधु-मांसके त्याग तथा पंच उदुम्बरोंके त्याग और हिंसादि विरतिको सार्वकालिक व्रत कहा है। मूलगुणका भी नाम नहीं है। न मधुके स्थानमें जुएका ही त्याग कराया है। आगे जो पाँच अणुव्रतोंके स्थानमें पाँच उदुम्बर फलोंके त्यागको अष्ट मूल गुणोंमें लिया गया उसका प्रारम्भ महापुराणसे ही हुआ प्रतीत होता है। पुरुषार्थ सिद्धयुपायमें भी सर्वप्रथम हिंसाके त्यागीको मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बर फलोंको छोड़नेका विधान है किन्तु उन्हें मूलगुण शब्दसे नहीं कहा है। सबसे प्रथम पुरुषार्थ सिद्धयपायमें ही इन आठोंमें होनेवाली हिंसाका स्पष्ट कथन मिलता है और इन्हें अनिष्ट, दुस्तर और पापके घर कहा है तथा यह भी कहा है कि इन आठोंका त्याग करनेपर ही सम्यग्दृष्टि जीव जिनधर्मकी देशनाका पात्र होते हैं। इसके बाद आचार्य सोमदेवने अपने उपासकाचारमें और आचार्य पद्मनन्दिने पंचविंशतिकामें स्पष्ट रूपसे इन आठोंके त्यागको मूलगुण कहा है और उन्हींका अनुसरण आशाधरजीने किया है । आचार्य अमितगतिने जो आचार्य सोमदेव और पद्मनन्दिके मध्य में हुए हैं, अपने श्रावकाचारमें इन आठोंके साथ रात्रि-भोजनका भी त्याग आवश्यक माना है किन्तु उन्हें मूलगुण शब्दसे नहीं कहा । देवसेनके भावसंग्रह में भी (गा.३५६) अष्ट मूल गणका निदेश है। शिवकोटिकी रत्नेमालामें एक विशेषता है उसमें मद्य, मांस और मधुके त्यागके साथ पाँच अणुव्रतोंको अष्ट मूल गुण कहा है। और पाँच उदुम्बरोंके त्यागवाले अष्ट मूल गुणको बालकोंके कहा है। पं. आशाधरके उत्तरकालीन मेधावीने अपने श्रावकाचारमें मद्यादि तीन १. 'मधुमांसपरित्यागः पञ्चोदुम्बरवर्जनम् । हिंसादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात् सार्वकालिकम्' ।-३८.१२२ । २. 'मद्यं मांसं क्षौद्रं पञ्चोदुम्बरफलानि यत्नेन । हिंसाव्युपरतिकामर्मोक्तव्यानि प्रथममेव ॥ अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनान्यमूनि परिवर्त्य । जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः॥ -पुरुषार्थ., ६१ तथा ७४ श्लो. ३. 'त्याज्यं मांसं च मद्यं च मधूदुम्बरपञ्चकम् । अष्टौ मूलगुणाः प्रोक्ता गृहिणो दृष्टिपूर्वकाः' । -पद्म. पञ्च. ६१२३ ४. 'मद्यमांसमधुरात्रिभोजनं क्षीरवृक्षफलवर्जनं त्रिधा। कुर्वते व्रतजिघृक्षया बुधास्तत्र पुष्यति निषेविते व्रतम् ॥-अमि. श्रा. ५०१ ५. 'मद्यमांसमधुत्यागसंयुक्ताणुव्रतानि नुः । अष्टौ मूलगुणाः पञ्चोदुम्बरश्चार्भकेष्वपि ॥'-शि. रत्न. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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