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________________ २९६ धर्मामृत ( सागार ) अथास्य विधिविशेषमाह चैत्यालयस्थः स्वाध्यायं कर्यान्मध्यावन्दनात । ऊर्ध्वमामन्त्रितः सोऽद्याद् गृहे स्वस्य परस्य वा ॥३१॥ स्वस्य-आत्मीयस्य पुत्रादेः । परस्य-यस्य तस्य सार्मिकस्य ॥३१॥ अथास्योद्दिष्टत्यागार्थ भावनाविशेषं श्लोकद्वयेनाह यथाप्राप्तमदन् देह सिद्धयर्थं खलु भोजनम् । देहश्च धर्मसिद्धयर्थ मुमुक्षुभिरपेक्ष्यते ॥३२॥ स्पष्टम् ॥३२॥ सा मे कथं स्यादुद्दिष्टं सावधाविष्टमश्नतः । कहि भैक्षामृतं भोक्ष्ये इति चेच्छेज्जितेन्द्रियः ॥३३॥ सा-धर्मसिद्धिः । भैक्षममृतमिवाजरामरत्वहेतुत्वात् । तदुक्तम् 'स धर्मलाभशब्देन प्रतिवेश्म सुधोपमाम् । सपात्रो याचते भिक्षां जरामरणसूदनीम् ॥[ ] ॥३३॥ अथास्य गृहत्यागविधिमाहइसकी विशेष विधि कहते हैं यह अनुमतिविरत श्रावक चैत्यालयमें रहकर स्वाध्याय करे। और मध्याह्नकालकी वन्दनाके पश्चात् बुलाने पर अपने पुत्र आदिके या जिस-किसी धार्मिकके घर भोजन करे ॥३१॥ इसकी उद्दिष्ट त्यागके लिए भावना विशेषको दो गाथाओंसे कहते हैं इन्द्रियोंको जीतनेवाला दशम श्रावक जो प्राप्त हो उसे संयमकी अनुकूलतापूर्वक खाते हुए इस प्रकार इच्छा करे कि मुमुक्षु शरीरकी स्थितिके लिए भोजनकी और धर्मकी सिद्धिके लिए शरीरकी अपेक्षा करते हैं। अधःकर्मसे युक्त अपने उद्देशसे बनाये गये आहारको खाने वाले मेरेको वह धर्मसिद्धि कैसे हो सकती है ? मैं भिक्षासे प्राप्त अमृतको कब खाऊँगा ? ॥३२-३३।। विशेषार्थ-दसवीं प्रतिमाधारी श्रावककी विशेषविधिका कथन केवल लाटी संहितामें हमारे देखने में आया है। आशाधरजीसे पूर्वके किसी श्रावकाचारमें नहीं है। लाटी संहितामें कहा है कि वह भोजनमें यह बनाना और यह न बनाना, ऐसा आदेश नहीं देता। मुनिकी तरह उसे प्रासुक शुद्ध अन्न आदि देना चाहिए। घरमें रहे, सिरके बाल आदि कटवाये न कटवाये उसकी इच्छा है। अब तक न तो वह नग्न ही रहता है और न किसी प्रकारका वेष ही रखता है। चोटी जनेऊ आदि रखे या न रखे उसकी इच्छा है। जिनालय में या सावध रहित घरमें रहे। बुलाने पर अपने सम्बन्धीके घर या अन्यके घर भोजन करे ॥३३॥ अब उसके गृह त्यागनेकी विधि कहते हैं--- १. लाटी सं. ७१४७-५० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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