SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ १२३ १२९ धर्मामृत ( सागार) जैनोंको दान देनेका महत्त्व ९० नैष्ठिकके ग्यारह भेद नामादि निक्षेपसे चार प्रकारके व्रतमें अतिचार लगानेवाला नैष्ठिक पाक्षिक जैनोंमें उत्तरोत्तर पात्रता ० होता है १२३ भाव जैनको दान देनेका विशेष फल दर्शनिकका स्वरूप १२५ गृहस्थाचार्यको कन्यादि दान __ मद्य आदिके व्यापारका भी निषेध १२६ साधर्मीको कन्या देने में हेतु २२ मद्यादिके सेवन करनेवालोंके साहचर्यका कन्यादानकी विधि और फल ९२ निषेध १२६ विवाहके भेद ९४ सब प्रकारके अचार आदिका निषेध १२७ विवाहविधि चमड़ेके पात्र में रखे घी-तेल आदिका निषेध १२७ योग्यकन्याके दाताको महान् पुण्यबन्ध पुष्पोंके खानेका निषेध सत्कन्याका पाणिग्रहण आवश्यक अजानाफल, बैगन, कचरिया आदि खानेका सत्कन्याके विना दहेजदान व्यर्थ निषेध १२९ साधर्मीको धन देनेका विधान १०० दिनके आदि तथा अन्तिम मुहर्तमें भोजन वर्तमान मुनियोंमें पूर्वमुनियोंकी स्थापना करके करनेका निषेध १३० पूजनेका विधान १०० जलगालन व्रतके अतिचार १३१ खान और तप पूजनीय १०२ सात व्यसनोंके उदाहरण १३१ पात्रदानका फल १०३ व्यसन शब्दकी निरुक्ति १३३ उत्तम, मध्यम, जघन्य पात्रका स्वरूप और द्यूतत्यागके अतिचार १३४ उनको दान देनेका फल १०४ वेश्याव्यसन त्यागके अतिचार अपात्रदान व्यर्थ १०८ चौर्यव्यसन त्यागके अतिचार १३५ भोगभूमिमें उत्पन्न जीवोंकी जन्मसे लेकर सात शिकार खेलनेके त्यागके अतिचार १३५ सप्ताह तककी अवस्थाका वर्णन १०९ परस्त्रीव्यसन त्यागके दोष अन्नादि दानका फल ११० अनारम्भवध और उत्कट आरम्भका निषेध मनियोंको उत्पन्न करने और उन्हें गुणी धर्मके विषयमें पत्नीको शिक्षित करनेका बनानेके प्रयत्न करनेकी प्रेरणा १११ विधान १३७ दयादत्तिका विधान ११२ स्त्रीको शिक्षा १३८ दिनमें भोजन करनेका विधान ११३ स्वस्त्रीमें अति आसक्तिका निषेध १३८ व्रतका स्वरूप ११४ कुलस्त्रीमें ही पुत्र उत्पन्न करनेका विधान १३९ विचारपूर्वक व्रत लेना आवश्यक ११४ बारह प्रकारके पुत्र १३९ संकल्पी हिंसाके त्यागका उपदेश ११५ कुलस्त्रीकी रक्षाका विधान १४० हिंस्र आदि प्राणियोंके वधका निषेध वैद्यक शास्त्रके अनुसार पुत्रोत्पादनकी विधि १४१ तीर्थयात्रादि करनेका उपदेश ११७ सत्पुत्रकी आवश्यकता १४३ यश कमानेपर जोर ११८ ११८ चतुर्थ अध्याय यश कमानेका उपाय १४५-२०३ वतिक प्रतिमाका स्वरूप १४५ तृतीय अध्याय १२०-१४४ निदानके भेद और उनका स्वरूप १४५ नैष्ठिक श्रावकका स्वरूप १२० तीन शल्य १४६ छह लेश्याओंका स्वरूप १२१ शल्य सहचारी व्रतोंकी निन्दा १४७ १३४ १३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy