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________________ प्रथम अध्याय मंगलपूर्वक प्रतिशा सागारका लक्षण प्रकारान्तरसे सागारका लक्षण सम्यक्त्व और मिथ्यात्वकी महिमा मिथ्यात्यके भेद और उनका प्रभाव सम्यग्दर्शनकी सामग्री सच्चे उपदेष्टाओं की दुर्लभता भद्रका लक्षण गृहस्थधर्मका पालक कौन सम्पूर्ण सागारधर्म असंयमी सम्यग्दृष्टिका महत्त्व गृहस्थको धर्म, यश और सुसका भी उपभोग करना चाहिए सम्यक्त्व के अनन्तर देशसंयम धारण करनेकी प्रेरणा प्रतिमाधारी धावकका अभिनन्दन ग्यारह प्रतिमा जिनपूजा और दानके भेद पक्ष, चर्या, साधनका स्वरूप श्रावकके तीन भेद द्वितीय अध्याय गृहस्थधर्मपालनकी अनुज्ञा आठ मूलगुण स्वमत और परमतसे मूलगुण मय के दोष मांस भक्षणके दोष स्वयं मरे प्राणीके मांसभक्षण में दोष मांसभक्षणका संकल्प भी हानिकर मांस और अनमें अन्तर [४] विषयानुक्रमणिका Jain Education International १- ३९ मधुके दोष १ २ ३ ५ ८ १० २१ २४ २५ २९ २१ ३२ ३४ ३७ ३९ ४०-११९ ४० ४१ ४२ ४४ ४६ ४९ ५१ ५२ मक्खन के दोष पाँच उदुम्बर फलोंके भक्षण में दोष रात्रिभोजननिषेध पाँच पापोंके त्यागका अभ्यास भी आवश्यक जुआ आदि व्यसनोंका निषेव प्रकारान्तरसे आठ मूलगुण द्विज जिनधर्मके श्रवणका अधिकारी कब जैनकुलमें उत्पन्न भव्यों का महत्व जैनेतर कुलमें उत्पन्न भव्योंका कर्तव्य आठ दीक्षान्वय क्रियाओंका वर्णन शूद्र भी यथायोग्य धर्मका अधिकारी नित्यपूजाका स्वरूप अष्टाह्निक, इन्द्रध्वज और महापूजाका स्वरूप कल्पद्रुम पूजाका स्वरूप जलादिपूजाका फल जिनपूजाकी सम्यक् विधि तथा उसका फल जिनपूजामें विघ्नोंको दूर करनेका उपाय स्नान करके ही पूजा करनेका अधिकार चरम आदिके निर्माणका विशेष फल कलिकालकी निन्दा कलिकाल में धर्मस्थितिका मुनियोंके लिए वसतिका मूल जिनालय स्वाध्यायशाला, भोजनशाला, औषधालयकी आवश्यकता जिनपूजकों के सब कष्ट दूर जिनवाणीकी पूजाका विधान जिनवाणी के पूजक जिनपूजक ही हैं गुरु-उपासनाकी विधि दान देनेका विधान तथा फल दानके अधिकारी समदतिका विधान For Private & Personal Use Only ५३ ५५ ५५ ५६ ५९ ५९ ६३ r ६५ ६७ ६७ ७० ७२ ७३ ७४ ७४ ७६ ७८ ७८ ८० ८१ ८२ ८३ ८३ ૮૪ ८५ ८५ ८६ ८७ ८८ ९० www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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