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________________ गौण्या गोर्यथा अश्वस्य यथा 'तिलधेनुं घृतधेनुं काञ्चनधेनुं च रुक्मधेनुं च । परिकल्प्य भक्षयन्तश्चाण्डालेभ्यस्तरां पापाः ॥' [ अमि श्रा. ९/५६ ] चतुर्दश अध्याय ( पंचम अध्याय ) 'योऽवधीतकीकृतखलिनार्थोऽन्वहं हठात् । बाह्यते को विशेषोऽस्य दातुरादातुरंहसाम् ॥' [ आदिशब्दगृहीतायाः कन्याया यथा- 'कामगर्द करीबन्धुस्येह द्रुमदवानलः । काल: कलितरु.........दुर्गतिद्वार कुञ्चिका । मोक्षद्वाराला धर्मंधनाचारविपत्करी । या कन्या दीयते सापि श्रेयसे कोऽयमागमः ॥' [ हेम्नो यथा तिलानां यथा Jain Education International 'दत्तेन येन दीप्यन्ते क्रोधलोभस्मरादयः । न तत्स्वर्णं चरित्रीभ्यो दद्याच्चारित्रनाशनम् ॥' [ कदन्नस्य यथा 'संसजन्त्यङ्गिनो येषु भूरिशस्त्रसकायिकाः । फलं विश्राणने तेषां तिलानां कल्मषं परम् ॥' [ ] ] For Private & Personal Use Only ] 1 'विवर्णं विरसं विद्धमसात्म्यं प्रमृतं च यत् । मुनिभ्योऽन्नं न तद्देयं यच्च भुक्तं गदावहम् ॥ उच्छिष्टं नीचलोका मन्योद्दिष्टं निगर्हितम् । न देयं दुर्जन स्पृष्टं देवयक्षादिकल्पितम् ॥ ग्रामान्तरात्समानीतं मन्त्रानीतमुपायनम् । न देयमापणक्रीतं विरुद्धं चायथार्तुकम् ॥ दधिसपिपयोभक्षप्रायं पर्युषितं मतम् । गन्धवर्णरसभृष्टमन्यत्सर्वं विनिन्दितम् ॥' [ सो. उपा. ७७९-७८२ ] जानेपर प्रतिवर्ष उनके श्राद्धपर ब्राह्मणोंको इस भावसे दान दिया जाता है कि यह उनको प्राप्त होगा । किन्तु यह सब मिथ्या होनेसे सम्यक्त्वके घातक हैं। सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहणसे सूर्य या चन्द्रमापर कोई संकट नहीं आता और संक्रान्ति तो सूर्यका एक राशिसे दूसरी राशिपर जानेका नाम है। इसी तरह जो मर गया, पता नहीं, उसने कहाँ जन्म लिया हो । उसकी सद्गति मरनेके बाद दिये गये दानसे कैसे हो सकती है। दर्शनिक आदि प्रतिमाधारी श्रावकोंको इस तरहके दान नहीं देना चाहिए । पाक्षिकको भी ग्रह संक्रान्ति और श्राद्ध में दान नहीं देना चाहिए ऐसा करने से उसके भी सम्यक्त्वका घात अवश्य होता है | आचार्य अमितगतिने अपने श्रावकाचार में दान के प्रकरण में इन दानोंका निषेध विस्तारसे किया है । लिखा है - हलसे जोतनेपर जिस पृथ्वीमें रहनेवाले प्राणी मर जाते हैं उस भूमि दानमें क्या फल हो सकता है। लोहा जहाँ भी जायेगा घात ही करेगा । ऐसे लोहे के दान में पुण्य कैसा ? जिसके लिए पात्रकी हिंसा की जाती है, जो सदा भयका कारण है, २५१ ३ ९ १२ १५ १८ २१ २४ www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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