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________________ २३६ धर्मामृत ( सागार) यतीनामप्यारम्भे अभावितपूर्वत्वादेकदेशविराधनस्य संभवात् । न चैतावता तस्य भङ्गो, मनसा सावा न करोमीत्यादिप्रत्याख्यानेष्वेकतरभङ्गेऽपि शेषसद्भावान्न सामायिकस्यात्यन्ताभाव इत्यमीषामतिचारतव । ३ सुभावितसामायिकस्तु यदा श्रावको भविष्यति तदा तृतीयपदमेवाभ्युपगमिष्यतोति युक्तो व्रतिकस्यातिचारपरिहाराय यत्नः ॥३३॥ अथ प्रोषधव्रतं लक्षयति स प्रोषधोपवासो यच्चतुष्पव्यां यथागमम् । साम्यसंस्कारदाढर्याय चतुर्भुक्त्युज्झनं सदा ॥३४॥ प्रोषधोपवास:-प्रोषधे पर्वे उपवासश्चतुर्विधाहारपरिहारः । चतुष्पा -चतुर्णा पर्वाणां समाहारश्च१ तुष्पर्वी। पर्वी (4) शब्दोऽकारान्तोऽप्यस्ति । तद्यथा-'अपर्वे मण्डितं शिरः' इति । तस्यां मासे द्वयोरष्टम्योर्द्वयोश्च चतुर्दश्योरित्यर्थः । उक्तं च 'पर्वाणि प्रोषधान्याहुर्मासे चत्वारि तानि च । पूजाक्रियाव्रताधिक्याद्धर्मकर्माऽत्र बृहयेत् ॥' [ सो. उपा. ४५० ] साम्येति । तदुक्तम् - 'सामायिकसंस्कारं प्रतिदिनमारोपितं स्थिरीकर्तुम् । पक्षाधूयोर्द्वयोरपि कर्तव्योऽवश्यमुपवासः ॥' [ पुरुषार्थ. १५१ ] पापकार्य नहीं करूँगा' इत्यादि प्रत्याख्यानोंमें किसी एकका भंग होनेपर भी शेष प्रत्याख्यान रहनेसे सामायिकका अत्यन्ताभाव नहीं होता। अतः ये पाँचों अतिचार ही हैं। जब श्रावक निरतिचार सामायिक करने लगेगा तब तो वह तीसरी प्रतिमा ही स्वीकार कर लेगा । अतः व्रत प्रतिमाधारीके लिए अतिचारोंको दूर करनेका प्रयत्न करना उचित है॥३३॥ अब प्रोषधोपवास व्रतका लक्षण कहते हैं जो सामायिकके संस्कारको दृढ़ करने के लिए चारों पोंमें आगमके अनुसार सदा चारों प्रकारके आहारका तथा चार भोजनोंका त्याग करता है, वह प्रोषधोपवास है ॥३४।। विशेषार्थ-प्रोषध अर्थात् पर्वमें उपवास करनेको प्रोषधोपवास कहते हैं। पूज्यपाद स्वामीके अनुसार प्रोषध शब्द पर्वका पर्यायवाची है अर्थात् प्रोषध और पर्व शब्दका अर्थ एक ही है । किन्तु आचार्य समन्तभद्र के अनुसार एक बार भोजन करनेको प्रोषध कहते हैं। और अशन, स्वाद्य, खाद्य और लेह्यके भेदसे चारों प्रकारके आहारका त्याग करना उपवास है। जो उपवास करके आरम्भ किया जाता है वह प्रोषधोपवास है। आशय यह है कि यह उपवास पर्वके दिन किया जाता है । अष्टमी और चतुर्दशीको पर्व कहते हैं। एक मासमें चार पर्व होते हैं। प्रोषधोपवास करनेवाला उपवाससे पहले दिन अर्थात् सप्तमी और त्रयोदशीको एक बार भोजन करता है। फिर अष्टमी और चतुर्दशीको उपवास करके नौमी और अमावस्या या पूर्णिमाके दिन भी एक बार भोजन करता है ? उसीको प्रोषधोपवास कहते हैं। यदि उपवाससे पहले दिन और उपवाससे अगले दिन दोनों बार भोजन किया जाये और पर्वके दिन उपवास किया जाये तो उसे प्रोषधोपवास नहीं कहते, मात्र उपवास १. प्रोषधशब्दः पर्वपर्यायवाची.......प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः ॥ सर्वा. सि. ६।२१ । २. श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्रने अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्याको चतुष्पर्वी कहा है, यथा-'चतुष्पर्वी अष्टमी-चतुर्दशी-पणिमा-अमावस्यालक्षणा।'-योग शा. ३.८५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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