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चतुर्दश अध्याय ( पंचम अध्याय )
२२७ अथ देशावकाशिकं निरुक्त्या लक्षयति
दिग्वतपरिमितदेशविभागेऽवस्थानमस्ति मितसमयम् ।
यत्र निराहुर्देशावकाशिकं तव्रतं तज्ज्ञाः ॥२५॥ देशावकाशिक-देशे दिग्वतगहीतपरिमाणस्य क्षेत्रस्य विभागेऽवकाशो अवस्थानं देशावकाशः । 'सोऽस्मिन्नस्तीति' अतोऽनेकस्वरादिनिकः । उक्तं च
"दिग्बते परिमाणं यत्तस्य संक्षेपणं पुनः ।
दिने रात्री च देशावकाशिकव्रतमुच्यते ॥ [ योग. ३।८४ ] अपि च
'देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।
प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य ॥ [ र. श्रा. ९२] ॥२५॥ अथ देशावकाशवतयुक्तं कथयति
स्थास्यामीदमिदं यावदियत्काल मिहास्पदे ।
इति संकल्प्य सन्तुष्टस्तिष्ठन् देशावकाशिकी ॥२६॥ इदमिदं यावत्-गृहगिरिग्रामादिद्रव्यमवधिं कृत्वा । उक्तं च
'गृहहारिग्रामाणं क्षेत्रनदीदावयोजनानां च । देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः ॥ संवत्सरमृतुरयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।
देशावकाशिकस्य प्राहुः कालावधि प्राज्ञाः ॥' [ रत्न. श्रा. ९३-९४ ] मानता है। इनमें से देशव्रत कुछ समयके लिए ही होता है किन्तु भोगोपभोगपरिमाण जीवनपर्यन्त के लिए भी होता है ॥२४॥ आगे देशावकाशिकका निरुक्तिपूर्वक लक्षण कहते हैं
जिस व्रतमें दिग्व्रतमें परिमाण किये गये क्षेत्रके किसी भागमें परिमितकाल तक श्रावकका ठहरना होता है, उस व्रतको उस व्रतकी निरुक्तिके ज्ञाता आचार्य देशावकाशिक व्रत कहते हैं ॥२५॥
विशेषार्थ-देश अर्थात् दिग्व्रतमें परिमाण किये गये क्षेत्रके हिस्से में अवकाश अर्थात् ठहरना जिसमें हो वह व्रत देशावकाशिक है यह देशावकाशिकका निरुक्तिपूर्वक लक्षण है ।।२५।।
आगे देशावकाशिक व्रतको पालनेवालेका लक्षण कहते हैं
'मैं इस स्थानपर अमुक घर, पर्वत या गाँव आदिकी मर्यादा करके इतने काल तक ठहरूँगा' ऐसा संकल्प करके मर्यादाके बाहरकी तृष्णाको रोककर सन्तोषपूर्वक ठहरनेवाला श्रावक देशावकाशिक व्रतका धारी होता है ।।२६।।
विशेषार्थ-कालका परिमाण करके नियत देशमें सन्तोषपूर्वक रहनेवाला श्रावक देशावकाशिकी कहा जाता है। रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें कहा है-दिग्व्रतमें निश्चित किये गये विशाल देशका कालका परिमाण करके प्रतिदिन अणुव्रतोंको लेकर सीमित करना देशावकाशिक व्रत है । गृहोंसे शोभित ग्राम, क्षेत्र, नदी, जंगल या योजनोंका प्रमाण ये देशावकाशिककी सीमा होती है। वर्ष, ऋतु, अयन, मास, चतुर्मास, पक्ष और नक्षत्र ये देशावकाशिकके कालकी मर्यादा होती है। मर्यादाओंके बाहर स्थूल और सूक्ष्म पाँचों पापोंका त्याग हो
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