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________________ १८० धर्मामृत ( सागार) ____ अथ सत्याणुव्रतस्य पञ्चातिचारान् हेयत्वेनाह मिथ्यादिशं रहोऽभ्याख्या कूटलेखक्रियां त्यजेत् । न्यस्तांशविस्मत्रनुज्ञा मन्त्रभेदं च तद्वतः ॥४५॥ मिथ्यादिशं-मिथ्योपदेशाभ्युदयनिःश्रेयसार्थेषु क्रियाविशेषेष्वन्यस्यान्यथा प्रवर्तनम् । परेण संदेहापन्नेन पृष्ठेऽज्ञानादिनाऽन्यथा कथनमित्यर्थः । अथवा प्रतिपन्नसत्यव्रतस्य परपीडाकरं वचनं असत्यमेव । प्रमा६ दात्परपीडाकारणे उपदेशेऽतिचारो, यथा वाह्यतां खरोष्टादयो, हन्यन्तां दस्यव इति निष यद्वा विवादे स्वयं परेण वाऽन्यतरातिसन्धानोपायोपदेशो मिथ्योपदेशः ॥१॥ रहोभ्याख्यां-रहस्येकान्ते स्त्रीपुंसाभ्यामनुष्ठितस्य क्रियाविशेषस्याभ्याख्या प्रकाशनं यया दम्पत्योरन्यस्य वा पुंसः स्त्रिया वा रागप्रकर्ष उत्पद्यते । सा च हास्यक्रीडादिनैव क्रियमाणोऽतिचारो न त्वभिनिवेशेन । तथा सति व्रतभङ्ग एव स्यात् ॥२॥ कुटलेखक्रिया--अन्येनानुक्तमननुष्ठितं च यत्किचित्तस्य परप्रयोगवशादेवं तेनोक्तमनुष्ठितं चेति वञ्चना निमित्तं लेखनम् । अन्यसरूपाक्षरमुद्राकरणमित्यन्ये ॥३॥ न्यस्तांशविस्मत्रनुज्ञां-त्यस्तस्य निक्षिप्तस्य १२ हिरण्यादिद्रव्यस्य अंशमेकदेशं विस्मर्तुविस्मरणशीलस्य निक्षेप्तुरनुज्ञा । द्रव्यनिक्षेप्नुविस्मृततत्संख्यस्याल्प संख्यं तद्गृह्णत एवमित्यनुमतिवचनम्। सोऽयं न्यासापहाराख्योऽतिचारः ॥४॥ मन्त्रभेदं-अङ्गविकार भ्रविक्षेपादिभिः पराभिप्रायं ज्ञात्वाऽसूयादिना तत्प्रकटनम् । विश्वसितमित्रादिभिर्वा आत्मना सह मन्त्रितस्य १५ लज्जादिकरस्यार्थस्य प्रकाशनम् । यत्तु आगे सत्याणुव्रतके पाँच अतिचारोंको छोड़ने योग्य बताते हैं सत्याणुव्रतीको मिथ्या उपदेश, रहोभ्याख्या, कूटलेखक्रिया, न्यस्तांशविस्मनुज्ञा और मन्त्रभेद छोड़ना चाहिए ॥१४५।। विशेषार्थ-जिसने स्थूल झूठको न बोलनेका व्रत लिया है उसे ये पाँच बातें छोड़ना चाहिए । १. मिथ्या उपदेश-किसीको अभ्युदय और मोक्षके कारणभूत विशेष क्रियाओंमें सन्देह हो और वह पूछे तो अज्ञानवश या अन्य किसी अभिप्रायसे अन्यथा बतला देना । अथवा जिसने सत्य बोलनेका व्रत लिया है वह यदि परको पीड़ा पहुँचानेवाले वचन बोलता है तो ऐसे वचन असत्य ही हैं। इसलिए यदि प्रमादवश परपीडाकारी उपदेश देता है तो वह अतीचार है । जैसे, घोड़ों और ऊँटोंको लादो, चोरोंको मारो इत्यादि निष्प्रयोजन वचन मिथ्योपदेश है। अथवा दो मनुष्योंके विवादमें स्वयं या दसरेके द्वारा दोनों में से किसी एकको ठगनेका उपाय वतलाना मिथ्योपदेश है। २. रहोऽभ्याख्या-रह' अर्थात् एकान्तमें स्त्री पुरुषके द्वारा की गयी विशेष क्रियाको अभ्याख्या 'अर्थात् प्रकट कर देना, जिससे दम्पतीमें या अन्य पुरुष और स्त्रीमें विशेष राग उत्पन्न हो । किन्तु यदि ऐसा हँसी या कौतुक वश किया जाये तभी अतिचार है । यदि किसी प्रकारके आग्रह वश ऐसा किया जाता है तब तो व्रतका ही भंग होता है । ३. कूटलेखक्रिया-दूसरेने वैसा न तो कहा और न किया, फिर भी ठगनेके अभिप्रायसे किसीके दबावमें आकर 'इसने ऐसा किया या कहा' इस प्रकारके लेखनको कूटलेखक्रिया कहते हैं। अन्यमतसे दूसरेके हस्ताक्षर बनाना, जाली मोहर बनाना कूटलेखक्रिया है । ४. न्यस्तांशविस्मत्रनुज्ञा-कोई व्यक्ति धरोहर रख गया। किन्तु उसकी संख्या भूल गया और भूलसे जितना द्रव्य रख गया था उससे कम माँगा तो 'हाँ इतनी है' १. 'मिथ्योपदेश-रहोऽभ्याख्यान-कूटलेखक्रिया-न्यासापहार-साकारमन्त्रभेदाः।-त. सू. ७।२६ । 'परिवादरहोऽ भ्याख्या पैशुन्यं कूटलेखकरणं च । न्यासापहारिताऽपि च ।'-रत्न. श्रा, ५६ श्लो. पुरुषार्थ. १८४ श्लो.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001017
Book TitleDharmamrut Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size10 MB
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