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गाथात्मक सूत्र भी उपलब्ध होते हैं। ये गाथात्मक सूत्र चतुर्थ वेदनाखण्ड में ८ और पांचवें वर्गणाखण्ड में २८, इस प्रकार सब ३६ हैं । चूर्णिसूत्र
जिस प्रकार आचार्य गुणधर विरचित कषायप्राभृत में कहीं-कहीं पूर्व में मूलगाथा सूत्र और तत्पश्चात् उनके विवरणस्वरूप भाष्य गाथाएँ रची गई हैं। उसी प्रकार प्रस्तुत षट्खण्डागम में कहीं पर संक्षेप में प्रतिपाद्य विषय के सूचक मूल गाथासूत्र को रचकर तत्पश्चात् ग्रन्थकार द्वारा उसके विवरण में आवश्यकतानुसार कुछ गद्यात्मक सूत्र भी रचे गये हैं। जैसे__ वेदनाभावविधान अनुयोगद्वार में प्रथमतः उत्तरप्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागविषयक अल्पबहुत्व की संकेतात्मक शब्दों में संक्षेप में प्ररूपणा करनेवाले तीन गाथा-सूत्रों को रचकर तत्पश्चात् उनके जघन्य अनुभागविषयक अल्पब हुत्व के प्ररूपक अन्य तीन गाथा-सूत्र रचे गये हैं। उनमें प्रथम तीन गाथागत गूढ़ अर्थ के स्पष्टीकरण में "एत्तो उक्कस्सओ चउसट्ठिपदियो महावंडओ कायव्वो भवदि (सूत्र ६५)" ऐसी सूचना करते हुए ५२ (६६-११७) गद्यात्मक सूत्र रचे गये हैं ! पश्चात् आगे के उन तीन गाथा-सूत्रों के स्पष्टीकरण में "एत्तो जहण्णओ चउसपिदियो महादंडओ कायन्वो भवदि (११८)" ऐसा निर्देश करते हुए ५६ (११६-७४) सूत्रों को रचकर उनके आश्रय से उन तीन (४-६) गाथाओं के दुरूह अर्थ को स्पष्ट किया गया है।
उन विवरणामक गद्य-सूत्रों की आवश्यकता इसलिए समझी गई कि उक्त गाथासूत्रों में नामके आद्य अक्षरों के द्वारा जिन प्रकृति विशेषों का उल्लेख किया गया है उनका विशेष स्पष्टीकरण करने के बिना सर्वसाधारण को बाध नहीं हो सकता था । जैसे----'दे' से देवगति व 'क' से कार्मण शरीर आदि।
इन विवरणात्मक सूत्रों को धवलाकारने 'चूणिसूत्र' कहा है।'
आगे इसी वेदनाभावविधान की प्रथम चूलिका के प्रारम्भ में “सम्मत्तुप्पत्ती वि य" आदि दो गाथासूत्र हैं, जिनके द्वारा ग्यारह गुणश्रेणियों रूप प्रदेशनिर्जरा और उसमें लगनेवाले काल के क्रम की सूचना की गई है। ___ इसके पूर्व इन दोनों गाथाओं को धवलाकार द्वारा वेदनाद्रव्यविधान में गाथासूत्र के रूप में उद्धृत किया जा चुका है।
१. जैसे १५वें 'चारित्रमोहक्षपणा' अधिकार में मूल गाथासूत्र ७ और उनकी भाष्य गाथा
में क्रम से ५,११,४,३,३,१ और ४ हैं । देखिए क० पा० सुत्त परिशिष्ट १, पृ० ६१५
१८ (गा० १२४-१६१) २. देखिए धवला पु० १२, पृ ४०-७५ ३. क-तदणणुवृत्ती वि कुदो णव्वदे? एदस्स गाहासुत्तस्स विवरणभावेण रचिद उवरिम
चुण्णिसुत्तादो ।-पु० १२, पृ० ४१ ख-कधं सव्वमिदं णव्वदे ? उवरि भण्णमाणचुण्णिसुत्तादो।-पु० १२, पृ० ४२-४३
ग-कधं समाणत्तं णव्वदे ? उवरि भण्णमाणचुण्णिसुत्तादो।-धवला पु० १२, पृ० ४३ ४. धवला पु० १०, पृ० २८२
३८ / बट्खण्डागम-परिशीलन
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