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________________ संयतासंयतस्य-संयतस्य -संजदासंजदस्स-संजदस्स (१,९-२,३ तथा ६,१३ व १९ आदि)। बन्धमानस्य बंधमाण स्स (१,६-२,५ व ६,१२ आदि)। कर्मण:-कम्मरस (१,६-२,४ व ७,१७,२० आदि)। नाम्नः= नामस्स (१,६-२,४ व ७,२०,५० आदि)। सर्वनाम स्त्रीलिंग में 'स्याः' के स्थान में से' देखा जाता हैएकस्याः - एक्किस्से (१,६-२,१०८) । एतस्याः - एदिस्से (१,६-२,१०८) । अन्यत्र भिन्नरूपताप्रथमायाः पृथिव्याः : पढमाए पुढवीए (१.६-६,४८) । द्वितीयायाः -- विदियाए (१,६-६,४६) । ६. सप्तमी में एक वचन के अन्त में कहीं 'मि' और कहीं 'म्हि' देखा जाता है। जैसेएकस्मिन् एक्कम्मि (१,१,३६ तथा ४३,१२६ व १४८-४६)। एकस्मिन् - एक्कम्हि (१,१,६३ व १,६-२,५ एवं हव १२) । कस्मिन् - कम्हि (१,६-८,११)। कस्मिन्, यस्मिन्, तस्मिन् - कम्हि, जम्हि, तम्हि (१,६-८,११) । ७. स्वरों में 'ऐ' के स्थान में 'ए' और कहीं 'अइ' भी देखा जाता है । जैसे - चैव- चेव (१,१,५)। नैव- णेव (२,१,३६-बन्धक-अबन्धक; २,१,८६-स्वामित्व)। नैगम =णेगम (४,१,५६ तथा ४,२,२,१ व ४,२,३,१)। नैगम - ण इगम (४,१,४८) । ८. 'औ' के स्थान में 'ओ' और क्वचित् 'उ' भीऔदयिक:- ओदइओ (१,७,२)। औपमिकः ओवसमिओ (१,७,८ व १३,१७,२५ आदि)। आमषौ षधि आमोसहि (४,१,३०) । औपशमिकः:: उवसमिओ (१,७,५ व ८४)। औपशमिकं -- उवसमियं (१,७,८३ व ८५) । 8. 'अव' के स्थान में 'ओ' देखा जाता है-- अवग्रहः-ओग्गहे (५,५,३७) । अवधि - ओहि (१,१,११५ व ११६ तथा ५,५,५२-५४) । देशावधिः -देसोही (५,५,५७) । १०. क्रियापदों का उपयोग षट्खण्डागम में कम ही हुआ है। जहाँ उनका उपयोग कुछ हुआ भी है वहाँ प्रायः परस्मैपद देखा जाता है । उनके उदाहरण 'अस्ति' के स्थान में 'अत्थि' आदेश होता है। उसका प्रयोग एक व वहुवचन दोनों में समान रूप से हुआ है । जैसे पज्जत्ताणं अस्थि [विभंगणाणं] । १,१,११८ (एक वचन में) सन्ति मिथ्यादृष्टयः= अस्थि मिच्छाइट्ठी (१,१,६) । प्रा० श० ११४।१० षट्खण्डागम : पीठिका / ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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