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________________ " । ४ देवायु अप्रमत्तसंयत तक|३३ साग०१/३ पूर्व-/१० ह० वर्ष अन्तर्मुहूर्त ६ नामकर्म (पिण्डप्रकृतियाँ) १ गतियां ४ १ नरक मिथ्यादष्टि २० को० २ हजार | पल्यो० के, को साग० वर्ष | सं० भाग से हीन २/७सा० सहस्र २तियंच मिथ्यादष्टि व , २ हजार पल्यो के । सासादन वर्ष असं०भाग से हीन २/७सा० ३ मनुष्य असं०सम्यग्दृ०तक १५ ,, डेढ ह०वर्ष ४देव अ प्रमत्तसंयत तक१० , २ ॥ पल्यो० के सं० | भाग से हीन २/७सा०सहस्र २ जाति ५/ १ एकेन्द्रिय | मिथ्यादृष्टि २०, २ ह० वर्ष पल्यो० के , असं० भाग से हीन २/७सा० २दीन्द्रिय १८ को० १.४/५ । को०साग० ह० वर्ष ३ त्रीन्द्रिय ४ चतुरिन्द्रिय ५ पंचेन्द्रिय अपूर्णकरण तक २०, २ ० वर्ष ३शरीर ५ १औदारिक अ०सम्यग्द.तक (४शरीरबंधन २ वैक्रियिक अपूर्वकरण तक पल्यो० के सं० और शरीर भाग से हीन सघात । ये |२/७सा०सहस्र औदारिकादि ३ आहारक अप्रमत्त और अन्त:को. मन्तःको०को ५ शरीरों के । अपूर्वकरणको०साग० सागरोपम समान हैं) | ४ तेजस | अपूर्वकरण तक |२० को २ ह० वर्ष पल्यो० के , को साग० असं० भाग से हीन २/७ सा० ५ कार्मण ६ शरीर- । १ समचतुरस्र | अपूर्वकरण तक १०, संस्थान ६ / २ न्यग्रोधपरि- मिथ्यादृष्टि और १२ ,, १.१/५ मण्डल सासादन ३ स्वातिसं० मि० और सासा०१४ ,, १.२/५ ४ कुब्जकसं० १६ , १.३/५ , ५ वामनसं० १.४/५, २ ह० वर्ष ७ शरीरांगो- १ औदारिक असंयतसम्यग्दृष्टि , पांग ३ । वर्ष or own ६ हुण्डसं० २० " परिशिष्ट १ |७७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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