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________________ ३ सम्यग्मिथ्यात्व | मिथ्यादृष्टि ७० को० ७ हजार F बबन्धप्रकृति कोड़ी वर्ष । सागरोपमा (२ चारित्र- अनन्तानुबन्धो ४ मिथ्यादृष्टि और ४० को० ४ हजार पल्यो के अन्तर्महतं मोहनीय) सासादन को० । वर्ष असं० भाग, सागरोपम हीन ४/७ सागरोपम अप्रत्याख्याना- मिथ्यादृष्टि से वरण ४ असंयतसम्यग्दृष्टि । तक प्रत्याख्यानावरण | मिथ्यादृष्टि से संयतासंयत संज्वलन क्रोध | मिध्यादृष्टि से, २मास अनिवृत्तिक० । संज्वलन मान १मास संज्वलन माया १ पक्ष संज्वलन लोभ | सूक्ष्मसाम्पराय अन्तर्मुहूर्त तक तक नौ नोकषाय १ स्त्रीवेद मिथ्यादृष्टि व १५ को० डेढ हजार पल्योपम सासादन. कोड़ी वर्ष के भसं० सागरोपम भाग से हीम १/७ सागरोपम २ पुरुषवेद मिथ्यादृष्टि से १० को १ हजार ८ वर्ष | अनिवृत्तिकरण को०साग० वर्ष ३ नपुंसकवेद | मिथ्यादृष्टि २० को २ हजार पल्यो०के० कोसाग० वर्ष असं० भाग से हीन २/७साग० ४ हास्य अपूर्वकरण तक|१० को० १ हजार | कोसाग० वर्ष ५ रति ६ अरति २० को० २ ह० वर्ष, ७ शोक ८ भय ६ जुगुप्सा ५ आयु ४ १ नारकायु | मिथ्यादृष्टि ३३ साग० वर्ष २ तिर्यगायु मिथ्यादृष्टि व ३ पल्यो क्षुद्रभवसासादनसम्य०, ग्रहण ३ मनुष्यायु मिश्र को छोड़ असंयतसम्य० तक कोटि " ७७२ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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