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________________ परिशिष्ट-१ विषयपरिचायक तालिका (१) कर्मप्रकृतियाँ और उनकी उत्कृष्ट-जघन्य स्थिति आदि प्रकृतिसमत्कीर्तन (पु० ६, पृ० १-७८) बन्ध कहाँ से कहाँ तक उत्कृष्ट जघन्य ०६, पृ० १४५-७६] पु०६, पृ० १८.. २०२ मूल प्रकृति | उत्तर प्रकृतियां स्थिति आवाधा स्थिति | आबाधा १ ज्ञानावरण आभिनिबोधिक मिथ्या० से सूक्ष्म ३० कोड़ा-३ हजार | अन्तर्मुहूतं अन्तर्मुहूर्त ज्ञानावरणादि ५/ साम्पराय तक | कोड़ी । वर्ष १ निद्रानिद्रा ।' मिथ्यादष्टि पल्योपम के २ प्रचलाप्रचला] और असं० भाग ३ स्त्यानगृद्धि ] सासादन से कम ३/७ सागरोपम २ दर्शनावरण ४ निद्रा । मिथ्यादृष्टि से ५प्रचला। अपूर्वकरण के | ७वें भाग तक | ६ चक्षुदर्श०. ] मिथ्यादृष्टि से ७ अचक्षुदर्श० | सूक्ष्म साम्पराय | ८ अवधिदर्श तक अन्तर्मुहूर्त 6 केवलिदर्श डेढ हजार ३ वेदनीय १ सातावेदनीय मिथ्यात्व से १५ को० वर्ष १२ मुहूर्त सयो० के० तक को०साग०३ हजार २ असातावेदनीय मिथ्यात्व से ३० को० वर्ष पल्योपम के प्रमत्त तक को०साग० असं० भाग कम३/७ सा० ४ मोहनीय १ सम्यक्त्व ] अबन्धप्रकृति ७० को पल्यो० के (१ दर्शन- | २ मिथ्यात्व । को० सा० असं० भाग से मोहनीय) कम ७/७ सागरोपम , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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