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________________ आचार्य पुष्पदन्त का उल्लेख धवला में इस प्रकार किया है-पु. १, पृ० ७१,७२,१३० १६२ व २२६ । १२. पूज्यपाद ये 'देवनन्दी' नाम से भी प्रसिद्ध रहे हैं। श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं. ४० (६४) के अनुसार उनका प्रथम नाम देवनन्दी रहा है । अनी महती बुद्धि के कारण वे 'जिनेन्द्रदेव'. नाम से भी प्रसिद्ध हए । देवताओं के द्वारा चरण-युगल के पूजे जाने से वे 'पूज्यपाद' हुए।' __ चन्द्रय्य नामक कवि के द्वारा कनड़ी भाषा में लिखे गये 'पूज्यपादचरित' के अनुसार उनका जन्म कर्नाटक देश के कोले नामक गांव में हुआ था। पिता का नाम माधव भट्ट और माता का नाम श्रीदेवी था। जन्मत: वे ब्राह्मण थे । ज्योतिषी ने उन्हें त्रिलोक-पूज्य बतलाया था, इसलिए उनका नाम पूज्यपाद रखा गया। ___ माधवभट्ट ने पत्नी के कहने से जैन धर्म को स्वीकार कर लिया था। उनके साले का नाम पाणिनी था। उससे भी उन्होंने जैन धर्म धारण करने के लिए कहा, किन्तु वह जंन न होकर मुडीगुंड गांव में वैष्णव संन्यासी हो गया था। पूज्यपाद ने बगीचे में सांप के मुंह में फंसे हुए मेंढक को देखकर विरक्त होते हुए जिनदीक्षा ले ली थी। उक्त 'पूज्यपादचरित' में पूज्यपाद की कुछ विशेषताओं को प्रकट किया गया है, जिनमें प्राय: प्रामाणिकता नहीं दिखती है । पूज्यपाद की विशेषता पूज्यपाद द्वारा-विरचित ग्रन्थों के परिशीलन से स्पष्ट है कि वे विख्यात वैयाकरण और सिद्धान्त के पारंगत रहे हैं। महापुराण के कर्ता आचार्य जिनसेन ने उन्हें (देवनन्दी को) विद्वानों के शब्दगत दोषों को दूर करने वाले शब्दशास्त्ररूप तीर्थ के प्रवर्तक-जैनेन्द्र व्याकरण के प्रणेता-कहा है। यथा कवीनां तीर्थकृद् देवः किं तरां तत्र वर्ण्यते । विदुषां वाइ.मलध्वंसि तीर्थ यस्य वचोमयम् ॥१-५२॥ हरिवंशपुराण के रचयिता जिनसेनाचार्य ने इन्द्र-चन्द्रादि व्याकरणों का परिशीलन करने वाले व देवों से वन्दनीय देवनन्दी की वाणी की वन्दना की है । यथा इन्द्रचन्द्रार्क-जनेन्द्रव्यापिण्याकरणक्षिणः। देवस्य देवसंघस्य न वन्धन्ते गिरः कथम् ॥१-३१॥ ___ कवि धनंजय ने अकलंकदेव के प्रमाण, पूज्यपाद के लक्षण (व्याकरण) और अपने 'द्विसन्धान काव्य'-इन तीन को अनुपम रत्न कहा है १. जैन साहित्य और इतिहास (द्वि०सं०) पृ० २५ २. देखिए 'जैन साहित्य और इतिहास' पृ० ४६-५१ (द्वि० सं०) तथा 'तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा', भाग २, पृ० २१६-२१ ।। प्रन्थकारोल्लेख | ६८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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