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________________ धारकों का अभिप्राय समझना चाहिए । आगे (गा० -९) उन दशपूर्वधरों के नामों का उल्लेख करते हुए यथाक्रम से उनके समय का जो पृथक् निर्देश किया गया है उसका जोड़ एक सौ इक्यासी (१०+१+१७ +२१+१+१+१+१३+२०+१४+१४=१८१) आता है। पर सब का जोड़ वहाँ 'सद-तिरासि वासाणि' अर्थात् १८३ वर्ष कहा गया है (गा. ७)। इससे निश्चित ही किसी के समय में दो वर्ष की भूल हुई है। (२) इसी प्रकार गा० १२ में दस-नो-आठ अंगधरों का सम्मिलित काल ६७ (वासं सत्ताणवदीय) वर्ष कहा गया है, जबकि पृथक्-पृथक् किए गये उनके कालनिर्देश के अनुसार वह ६६ (६+१८-२३+५२=६६) वर्ष आता है । इस प्रकार यहां भी किसी के समय में दो वर्ष की भूल हुई है। इस पट्टावली की विशेषताएं (१) तिलोयपण्णत्ती तथा धवला-जयधवला व हरिवंशपुराण (१,५८-६५ तथा ६०,२२२४) आदि में यद्यपि इन केवली-श्रुतकेवलियों के सम्मिलित काल का निर्देश तो किया गया है पर वहां पृथक-पृथक् किसी श्रुतधर के काल का निर्देश नहीं किया गया, जब कि इस पट्टावनी में सम्मिलित काल के साथ उनके पृथक्-पृथक् काल का भी निर्देश किया गया है। (२) अन्यत्र धवला आदि में जहां सुभद्र आदि चार श्रुतधरों को आचारांग के धारक कहा गया है वहाँ इस पट्टावली में उन्हें दस-नो-आठ अंगों के धारक कहा गया है। पर यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उन चार श्रुतधरों में १०, ६ और ८ अंगों के धारक कौन-कौन रहे हैं। (३) अन्यत्र यह श्रुतधरों की परम्परा लोहाचार्य तक ही सीमित रही है। किन्तु इस पावली में लोहाचार्य के पश्चात् अहंबली, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलि इन पांच अन्य श्रुतधरों का उल्लेख एक अंग के धारकों में किया गया है। (४) इसी कारण अन्यत्र जो उन श्रुतधरों के काल का निर्देश किया गया है, उससे इस पट्रावली में निर्दिष्ट उनके काल में कुछ भिन्नता हुई है । फिर भी उनका समस्त काल दोनों में ६८३ वर्ष ही रहा है । यथाधवला, पृ० १, पृ० ६५-६७ व पु. १, पृ० १३०-३१ प्राकृत पट्टावली ३ केवली ६२ वर्ष ३ केवली ६२ वर्ष ५ श्रुतकेवली १००, ५ श्रुतकेवली १०० ॥ ११ एकादशांग व ११ एकादशांग व दशपूर्वधर १८३ ,, दशपूर्वधर ५ एकादशांगधर २२० । ५ एकादशांगधर ४ आचारांगधर ११८, ४ दस-नो-आठ अंगों के धारक Xxx ५ आचारांगधर ११८ , १८३ ॥ १२३ ॥ ___६७ समस्त काल ६८३ वर्ष ६९३ वर्ष ६८./पट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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