SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 731
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम प्रसिद्ध कर दिया था। इसके पूर्व उनका क्या नाम रहा था, यह ज्ञात नहीं होता। उनका प्रामाणिक जीवनवृत्त भी उपलब्ध नहीं है। विबुध श्रीधर-श्रुतावतार में भविष्यवाणी के रूप में उनके सम्बन्ध में एक कथानक उपलब्ध होता है, जो इस प्रकार है____ "इस भरत क्षेत्र के अन्तर्गत वांमि (?) देश में एक वसुन्धर नाम की नगरी होगी। वहां के राजा नरवाहन और रानी सुरूपा के पुत्र न होने से वे खेदखिन्न रहेंगे। तब सुबुद्धि नाम के एक सेठ उन्हें पद्मावती की पूजा करने का उपदेश देंगे। तदनुसार उसकी पूजा करने पर राजा को पुत्र की प्राप्ति होगी, उसका नाम वह 'पद्म' रक्खेगा। राजा तब सहस्रकूट चैत्यालय को निर्मापित कराएगा और प्रतिवर्ष यात्रा करेगा। वसन्त मास में सेठ भी राजप्र[प्रा]साद से पग-पग पर पृथिवी को जिनमन्दिरों से मण्डित करेगा । इस बीच मधु मास के प्राप्त होने पर समस्त संघ वहाँ आवेगा । राजा सेठ के साथ जिनस्तवन और जिन-पूजा करके नगरी में रथ को घुमाता हुआ जिनप्रांगण में स्थापित करेगा। नरवाहन राजा मगध के अधिपति अपने मित्र को मुनि हुआ देखकर वैराग्यभावना से भावित होता हुमा सुबुद्धि सेठ के साथ जिन-दीक्षा को स्वीकार करेगा। इस बीच एक लेखवाहक आवेगा । वह जिनों को प्रणाम व मुनियों की वन्दना करके धरसेन गुरु की वन्दना के प्रतिपादनपूर्वक लेख को समर्पित करेगा। वहाँ के मुनिराज उसे लेकर बाँचेंगे-गिरिनगर के समीप गुफा में रहनेवाले धरसेन मुनीश्वर अग्रायणीय पूर्व के, जो पांचवा वस्तु अधिकार है, चौथे प्राभृतशास्त्र का व्याख्यान करेंगे। धरसेन भट्टारक नरवाहन और सद्बुद्धि (सुबुद्धि) के पठन, श्रवण और चिन्तन क्रिया के करने पर आषाढ़ शुक्ला एकादशी के दिन शास्त्र को समाप्त करेंगे। तब भूत रात में एक की बलिविधि और दूसरे के चार दांतों को सुन्दर करेंगे। भूतों के द्वारा की गई बलि के प्रभाव से नरवाहन का नाम भूतबलि होगा और समान चार दांतों के प्रभाव से सद्बुद्धि पुष्पदन्त नाम से मुनि होगा। धरसेन अपने मरण को निकट जानकर दोनों को क्लेश न हो, इस विचार से उन दोनों मुनियों को वहां से विदा करेंगे। दोनों मुनि अंकुलेसुरपुर जाकर व षडंगरचना को करके शास्त्रों में लिखावेंगे। नरवाहन संघसहित उन शास्त्रों की पूजा करेगा व 'षडंग' नाम देकर निजपालित को पुस्तक के साथ पुष्पदन्त के समीप भेजेगा। पुष्पदन्त षडंग नामक पुस्तक को दिखलाने वाले निजपालित को देखकर मन में सन्तोष करेंगे।" इत्यादि ।' यह कथानक काल्पनिक दिखता है, प्रामाणिकता इसमें नहीं झलकती। ग्रन्थ के समाप्त होते ही वे (दोनों) गुरु का आदेश पाकर गिरिनगर से चले गये। उन्होंने अंकुलेश्वर पहुँचकर वर्षाकाल बिताया। वर्षाकाल को वहां समाप्त कर पुष्पदन्त अंकुलेश्वर से वनवास देश में पहुंचे। वहां उन्होंने जिनपालित को दीक्षा दी व बीस सूत्रों को करके-गुणस्थान व जीवसमासावि रूप बीस प्ररूपणाओं से सम्बद्ध एक सो सतत्तर सूत्रों को रचकरउन्हें जिनपालित को पढ़ाया और सूत्रों के साथ जिनपालित को भूतबलि भगवान के पास भेजा। भूतबलि ने जिनपालित के पास बीस प्ररूपणाविषयक उन सूत्रों को देखकर और जिनपालित से पुष्पदन्त को अल्पायु जानकर महाकर्मप्रकृतिप्राभूत का व्युच्छेद न हो जाय, इस अभिप्राय से द्रव्यप्रमाणानुगम को आदि लेकर समस्त षटखण्डागम की रचना की। इस प्रकार खण्डसिद्धान्त १. विबुध श्रीधर-विरचित श्रुतावतार (सिद्धान्त-सारादिसंग्रह, पृ० ३१६-१८)। प्रन्यकारोल्लेख / ६७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy