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________________ और आठ अंगों के धारक हुए हैं। पर उन चार आचार्यों में दस, नौ और आठ अंगों के धारक कौन रहे हैं, यह पट्टावली में स्पष्ट नहीं है। इस पट्टावली में इन चारों आचार्यों का समुदित काल ६७ वर्ष कहा गया है, जबकि अन्यत्र उनका वह काल ११८ वर्ष कहा गया है। ५. जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, अन्यत्र यह आचार्य परम्परा लोहार्य पर समाप्त हो गयी है । परन्तु इस पट्टावली में उन लोहाचार्य के आगे अर्हबली, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलि इन पाँच अन्य आचार्यों का भी उल्लेख किया गया है तथा उनका काल प्रमाण पृथक्-पृथक् क्रम से २८,२१,१६,३० और २० वर्ष व समुदित रूप में ११८ (२८+२१+१६+३०+२०) वर्ष कहा गया है। महावीर निर्वाण के पश्चात् इस आचार्यपरम्परा का समस्त काल ६८३ वर्ष जैसे धवला आदि में उपलब्ध होता है वैसे ही वह इस पट्टावली में भी पाया जाता है । विशेषता यह है कि अन्यत्र धवला आदि में जहाँ ५ ग्यारह-अंगों के धारकों का काल २२० वर्ष निर्दिष्ट किया गया है वहाँ इस पट्टावली में उनका वह काल १२३ वर्ष कहा गया है। इस प्रकार यहाँ उसमें ६७ (२२०-१२३) वर्ष कम हो गये हैं तथा अन्यत्र जहाँ सुभद्राचार्य आदि चार आचार्यों का समस्त काल ११८ वर्ष बतलाया गया है वहाँ इस पट्टावली में उनका वह काल ६७ वर्ष ही कहा गया है। इस प्रकार २१ (११८-६७) वर्ष यहाँ भी कम हो गये हैं। दोनों का जोड़ ११८ (६७ +२१) वर्ष होता है । यही काल इस पट्टावली में उन अर्हद्बली आदि पाँच आचार्यों का है, जिनका उल्लेख अन्यत्र धवला आदि में नहीं किया गया है। इस प्रकार ६८३ वर्षों की गणना उभयत्र समान हो जाती है । अर्हबली का शिष्यत्व ___ श्रवणबेलगोल के एक शिलालेख में आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि को आचार्य अर्हबली का शिष्य कहा गया है। वह इस प्रकार है यः पुष्पदन्तेन च भूतबल्याख्येनापि शिष्यद्वितयेन रेजे । फलप्रदानाय जगज्जनानां प्राप्तोऽकुराभ्यामिव कल्पभूजः ॥ अर्हद्बलिस्संघचतुर्विधं स श्रीकोण्डकुन्दान्वयमूलसंघम् । कालस्वभावादिह जायमानद्वषेतराल्पीकरणाय चक्रे ॥ -शिलालेख क्र० १०५, पद्य २५-२६ यह शिलालेख शक संवत् १३२० का है। लेखक ने पुष्पदन्त और भूतबलि को किस आधार पर अर्हबली का शिष्य कहा है, यह ज्ञात नहीं है। यदि यह सम्भव हो सकता है तो समझना चाहिए कि अर्ह बली उन दोनों के दीक्षागुरु और धरसेन विद्यागुरु रहे है । वैसी परिस्थिति में यह भी सम्भव है कि धरसेनाचार्य ने महिमा में सम्मिलित जिन दक्षिणापथ के आचार्यों को लेखपत्र भेजा था उनका वह सम्मेलन सम्भवत: इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार' के अनुसार संघ-प्रवर्तक इन्हीं अर्हद्बली के द्वारा पंचवर्षीय युग-प्रतिक्रमण के समय बुलाया गया हो तथा इसी सम्मेलन में से उन अर्हबली ने पुष्पदन्त और भूतबलि इन दो अपने सुयोग्य शिष्यों १. इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार, ८५-६५ १८ / षटखण्डागम-परिशील Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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