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इस प्रकार निषेक-रचना के प्रसंग में अनेक शंका-समाधानपूर्वक आचार्य भूतबलि के मत से उच्चारणाचार्य के भिन्न मत को प्रकट करते हुए धवला में उच्चारणाचार्य का उल्लेख है ।
४. एलाचार्य
इनके विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं है। वेदनाखण्ड के अन्तर्गत दो अनुयोगद्वारों में प्रथम 'कृति' अनुयोगद्वार की प्ररूपणा करते हुए धवला में अर्थकर्ता के रूप में वर्धमान जिनेन्द्र की प्ररूपणा की गयी है। वहाँ एक मत के अनुसार वर्धमान जिन की ७२ वर्ष और दूसरे मत के अनुसार उनकी आयु ७१ वर्ष, ३ मास और २५ दिन प्रमाण निर्दिष्ट की गयी है व तदनुसार ही उनके कुमारकाल आदि की पृथक-पृथक् प्ररूपणा की गयी है।
इस प्रसंग में यह पूछने पर कि इन दो उपदेशों में यथार्थ कौन है, धवलाकार ने कहा है कि एलाचार्य का वत्स (मैं वीरसेन) कुछ कहना नहीं चाहता, क्योंकि इस विषय में कुछ उपदेश प्राप्त नहीं है।' इस प्रकार धवलाकार वीरसेनाचार्य ने 'एलाचार्य का वत्स' कहकर अपने को एलाचार्य का शिष्य प्रकट किया है।
यद्यपि धवला की अन्तिम प्रशस्ति में उन्होंने एलाचार्य के अतिरिक्त अपने को आर्यनन्दी का शिष्य और चन्द्रसेन का नातू (प्रशिष्य) प्रकट किया है, पर उसका अभिप्राय यह समझना चाहिए कि उनके विद्यागुरु एलाचार्य और दीक्षागुरु आर्यनन्दी रहे हैं।
इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार में भी वीरसेनाचार्य को एलाचार्य का शिष्य कहा गया है। विशेष इतना है कि वहाँ एलाचार्य को चित्रकूटपुरवासी निर्दिष्ट किया गया है।
इसके अतिरिक्त अन्य कुछ जानकारी एलाचार्य के विषय में प्राप्त नहीं है। ५. गिद्धि-पिंछाइरिय (गृद्धपिच्छाचार्य)
गद्धपिच्छाचार्य अपरनाम उमास्वाति के द्वारा विरचित तत्त्वार्थसूत्र एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में प्रतिष्ठित है। ___ जीवस्थान कालानुगम अनुयोगद्वार में नोआगमद्रव्यकाल के स्वरूप को प्रकट करते हुए धवलाकार ने "वर्तना-परिणाम-क्रियापरत्वापरत्वे च कालस्य" इस सूत्र (५-२२) को गद्धपिच्छा
१. दोसुवि उवएसेसु को एत्थ समंजसो? एत्थ ण बाहइ जिब्भमेलाइरियवच्छओ, अलद्धोवदेसत्तादो दोण्णमेक्कस्स बाहाणुवलंभादो। किंतु दोसु एक्केण होदव्वं । तं जाणिय वत्तव्वं ।।
-धवला, पु० ६, पृ० १२६ २. जस्स से [प] साएण मए सिद्धन्तमिदं हि अहिलहुदी।
महु सो एलाइरियो पसियउ वरवीरसेणस्स ।।--गा० १ अज्जज्जणंदिसिस्सेणुज्जवकम्मस्स चंदसेणस्स । तह णत्तुवेण पंचत्थुहण्यंभाणुणा मुणिणा।।-गा० ४ ३. काले गते कियत्यपि ततः पुनश्चित्रकूटपुरवासी।
श्रीमानेलाचार्यों बभूव सिद्धान्ततत्त्वज्ञः ।।-१७७ तस्य समीपे सकलं सिद्धान्तमधीत्य वीरसेनगुरुः ।
उपरितमनिबन्धनाद्यधिकारानष्ट (?) च लिलेख ॥-१७८ ६५६ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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