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________________ (५) उपर्युक्त कृति अनुयोगद्वार में नयप्ररूपणा के प्रसंग में धवला में द्रव्याथिकनय के ये तीन भेद निर्दिष्ट किये गये है-नैगम, संग्रह और व्यवहार । इनमें संग्रहनय के स्वरूप को प्रकट करते हुए वहाँ कहा गया कि जो पर्यायकलंक से रहित होकर सत्ता आदि के आश्रय से सबकी अद्वैतता का निश्चय करता है-सबको अभेद रूप में ग्रहण करता है-वह संग्रहनय कहलाता है, वह शुद्ध द्रव्यार्थिकनय है। आगे वहाँ 'अत्रोपयोगी गाहा' इस निर्देश के साथ ग्रन्थनामोल्लेख के बिना पंचास्तिकाय की "सत्ता सव्वपयत्था" आदि गाथा को उद्धृत किया गया है।' (६) वर्गणा खण्ड के अन्तर्गत 'स्पर्श' अनुयोगद्वार में द्रव्यस्पर्श के प्रसंग में पुद्गलादि द्रव्यों के पारस्परिक स्पर्श को दिखलाते हुए धवला में :एत्थुव उज्जतीओ गाहाओ' ऐसी सूचना करके "लोगागासपदेसे एक्कक्के' आदि गाथा के साथ पंचास्तिकाय की "खधं सयलसमत्थं" गाथा को उद्धृत किया गया है। विशेष इतना कि यहाँ 'परमाणू चेव अविभागी' के स्थान में 'अविभागी जो स परमाणु' पाठ-भेद है ।' १५. पिडिया--जीवस्थान-सत्प्ररूपणा में आलाप-प्ररूपणा के प्रसंग में लेश्यामार्गणा के आश्रय से पद्मलेश्या वाले संयतासंयतों में आलापों को स्पष्ट करते हुए धवलाकार ने उनके द्रव्य से छहों लेश्याओं और भाव से एक पद्मलेश्या की सम्भावना प्रकट की है। इस प्रसंग में वहाँ आगे 'उक्तं च पिडियाए' इस निर्देश के साथ यह गाथा उद्धृत की गयी है: लेस्सा य दव्वभावं कम्म णोकम्ममिस्सियं दव्वं । जीवस्स भावलेस्सा परिणामो अप्पणो जो सो।। यह 'पिडिया' नाम का कौन सा ग्रन्थ रहा है व किसके द्वारा वह रचा गया है, यह अन्वेषणीय है। वर्तमान में इस नाम का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। सम्भव है, वीरसेनाचार्य के समक्ष वह रहा हो। १६. पेज्जदोसपाहुड---यह कसायपाहुड का नामान्तर है। आचार्य गुणधर के उल्लेखानसार पांचवें ज्ञानप्रवादपूर्व के अन्तर्गत दसवें 'वस्तु' नामक अधिकार के तीसरे प्राभूत का नाम पेज्जदोस है। इसी का दूसरा नाम कसायपाहुड है। धवला में प्रस्तुत षट्खण्डागम का पूर्वश्रुत से सम्बन्ध प्रकट करते हुए उस प्रसंग में कहा गया है कि लोहार्य के स्वर्गस्थ हो जाने पर आचार (प्रथम अंग) रूप सूर्य अस्तंगत हो गया। इस प्रकार भरत क्षेत्र में बारह अंगों रूप सूर्यों के अस्तंगत हो जाने पर शेष आचार्य सब अंगपूर्वो के एकदेशभूत पेज्जदोस और महाकम्मपयडिपाहुंड आदि के धारक रह गये । १७. महाफम्मपडिपाहुड--प्रस्तुत षट्खण्डागम इसी महाकर्मप्रकृतिप्राभृत के उपसंहार १. धवला, पु. ६, पृ० १७०-७१ २. धवला, पु १३, पृ० १३, (यह गाथा मूलाचार (५-३४) और तिलोयपण्णत्ती (१-६५) में उपलब्ध होती है। ३. धवला, पु० २, पृ० ७८८ ४. पुवम्मि पंचमम्मि दु दसमे वत्थुम्मि पाहुडे तदिए। पेज् ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं णाम ||--क० पा० १ ५. धवला, पु० ६, पृ० १३३ ५६६ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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