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अन्त में भुजाकार के प्रसंग में उसकी प्ररूपणा पूर्वनिर्दिष्ट उन्हीं स्वामित्व व एक जीव की अपेक्षा काल आदि अधिकारों में की गयी है ।
अनुभाग संक्रमस्थानों की प्ररूपणा के प्रसंग में यह सूचना कर दी गई है कि उनकी प्ररूपणा सत्कर्मस्थानों की प्ररूपणा के समान है (पृ० ३६८-४०८)।
इस प्रकार से अनुभागसंक्रम समाप्त हुआ है।
प्रदेशसंक्रम का स्वरूप निर्देश करते हुए कहा गया है कि जो प्रदेशाग्र अन्य प्रकृति में संक्रान्त कराया जाता है उसका नाम प्रदेशसंक्रम है। वह मूल और उत्तर प्रकृतिसंक्रम के भेद से दो प्रकार का है। मूल प्रकृतियों में प्रदेश संक्रम सम्भव नहीं है। उत्तर प्रकृतिसंक्रम पांच प्रकार का है ---उद्वेलनसंक्रम, विध्यातसंक्रम, अधःप्रवृत्तसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम । इनके स्वरूप-निरूपण के लिए निम्न गाथा को उद्धृत किया गया है
धंधे अधापवत्तो विज्झाद अबंध अप्पमत्तंतो।
गणसंकमो द एत्तो पयडीणं अप्पसत्थाणं ।। अधःप्रवृत्तसंक्रम-जहां जिन प्रकृतियों का बन्ध सम्भव है वहाँ उन प्रकृतियों के बन्ध के होने पर और उसके न होने पर भी अधःप्रवृत्त संक्रम होता है। यह नियम बन्ध प्रकृतियों के विषय में है, अबन्ध प्रकृतियों के विषय में नहीं, क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन अबन्धप्रकृतियों में भी अधःप्रवृत्तसंक्रम पाया जाता है।
विध्यातसंक्रम-जहाँ जिन प्रकृतियों का नियम से बन्ध सम्भव नहीं है, वहाँ उनका विघ्यात संक्रम होता है। यह भी नियम मिथ्या दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक ध्र वस्वरूप से हैं। ___गुणसंक्रम-अप्रमत्तसंयत से लेकर आगे के गुणस्थानों बन्ध से रहित प्रकृतियों का गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम भी होता है।
यह प्ररूपणा अप्रशस्त प्रकृतियों के विषय में की गई है, प्रशस्त प्रकृतियों के विषय में नहीं; क्योंकि उपशम और क्षपक दोनों ही श्रेणियों में बन्ध से रहित प्रशस्त प्रकृतियों का अध:प्रवृत्तसंक्रम देखा जाता है।
आगे कौन प्रकृतियाँ कितने भागहारों से संक्रान्त होती हैं, इसे अन्य एक गाथा को उद्धृत कर उसके आधार से स्पष्ट किया गया है। साथ ही, वे भागहार उनके कहाँ किस प्रकार से सम्भव हैं, इसे भी स्पष्ट किया है। यथा
पांच ज्ञानावरणीय व चार दर्शनावरणीय आदि उनतालीस प्रकृतियों का एकमात्र अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है। ____ स्त्यानगृद्धि आदि तीन दर्शनावरण, बारह कषाय व स्त्रीवेद आदि तीस प्रकृतियों के उद्वेलन के बिना शेष चार संक्रम होते हैं ।
निद्रा, प्रचला, अप्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस और उपघात इन सात प्रकृतियों के अधःप्रवृत्त संक्रम और गुणसंक्रम ये दो होते हैं।
असातावेदनीय व पाँच संस्थान आदि बीस प्रकृतियों के अधःप्रवृत्तसंक्रम, विध्यातसंक्रम और गुणसंक्रम ये तीन होते हैं।
मिथ्यात्व प्रकृति के विध्यातसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम ये तीन होते हैं।
वेदकसम्यक्त्व के अधःप्रवृत्तसंक्रम, उद्वेलनसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम ये चार होते हैं। ५४८ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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