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द्रव्यवर्गणा होती है। धवला में इसके स्थानों की भी प्ररूपणा की गयी है।
पूर्वोक्त विधान के अनुसार आवली के असंख्यातवें भाग मात्र पुलवियों के बढ़ जाने पर महामत्स्य के शरीर में एकबन्धनबद्ध छह काय के जोवों के संघात में उत्कृष्ट सूक्ष्म निगोदवर्गणा देखी जाती है (धवला, पु० १४, पृ० ११३-१६) । वर्गणाध्र वाध्र वानुगम आदि १२ अनुयोगद्वार
यहाँ वर्गणाद्रव्यसमुदाहार की प्ररूपणा में सूत्रकार ने जिन वर्गणाप्ररूपणा व वर्गणानिरूपणा आदि १४ अनुयोगद्वारों का निर्देश किया है (सूत्र ५,६,७५), उनमें से उन्होंने वर्गणाप्ररूपणा व वर्गणानिरूपणा इन पूर्व के दो अनुयोगद्वारों की ही प्ररूपणा की है, शेष वर्गणाध्र वाध्र वानुगम आदि १२ अनुयोगद्वारों की नहीं। - इस स्थिति में 'वर्गणानिरूपणा' अनुयोगद्वार के समाप्त हो जाने पर धवला में यह शंका उठायी गयी है कि सूत्रकार ने पूर्वनिर्दिष्ट १४ अनुयोगद्वारों में पूर्व के दो अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा करके शेष 'वर्गणाध्र वाध्र वानुगम' आदि १२ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा क्यों नहीं की? उनका ज्ञान न होने से उन्होंने उनकी प्ररूपणा न की हो, यह तो सम्भव नहीं है। क्योंकि २४ अनयोगद्वार रूप 'महाकर्मप्रकृतिप्राभूत' के पारंगत भगवान् भूतबलि के उनकी जानकारी न रहने का विरोध है । यह भी सम्भव नहीं है कि विस्मरणशील हो जाने से वे उनकी प्ररूपणा न कर पाये हों, क्योंकि जो प्रमाद से रहित हो चुका है वह विस्मरणशील नहीं हो सकता।
इसके उत्तर में वहाँ कहा गया है कि यह कुछ दोष नहीं है, क्योंकि पूर्वाचार्यों के व्याख्यानक्रम के जतलाने के लिए सूत्रकार ने उन १२ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा नहीं की है।
इस पर वहाँ यह पूछा गया है कि अनुयोगद्वारों में वहाँ के समस्त अर्थ की प्ररूपणा संक्षिप्त शब्दसमह के द्वारा क्यों की जाती है । उत्तर में धवलाकार ने कहा है वचनयोगरूप आस्रव के द्वारा आनेवाले कर्मों को रोकने के लिए वहाँ विवक्षित विषय की प्ररूपणा संक्षिप्त शब्दसमूह के द्वारा कर दी जाती है।
धवलाकार ने इस प्रसंग में सूत्रकार द्वारा की गयी उन दो अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा को देशामर्शक मानकर, जीवसमुदाहार के प्रसंग में निर्दिष्ट/उन १४ अनुयोगद्वारों में से सूत्रकार के द्वारा अप्ररूपित वर्गणाध्र वाध्र वानुगम, वर्गणासान्तर-निरन्तरानुगम, वर्गणाओज-युग्मानुगम, वर्गणाक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणाउपनयानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणाअल्पबहुत्वानुगम इन १२ अनुयोगद्वारों की यथाक्रम से विस्तारपूर्वक प्ररूपणा की है।'
आगे धवला में यथाक्रम से सूत्र ६६ में निर्दिष्ट आठ अनुयोगद्वारों में से अनन्तरोपनिधा, परम्परोपनिधा, अवहार, यवमध्य, पदमीमांसा और अल्पबहुत्व इन शेष छह अनुयोगद्वारों की की भी प्ररूपणा की गई है।
इस प्रकार पूर्वोक्त वर्गणा व वर्गणाद्रव्यसमुदाहार आदि आठ अनुयोगद्वारों के आधार से
१. धवला, पु० १४, पृ० १३५-७६ २. वही-अनन्तरोपनिधा व परम्परोपनिधा पृ० १७६-६०, अवहार पृ० १६०-२०१, यवमध्य
पृ० २०१-७, पदमीमांसा पृ० २०७-८ और अल्पबहुत्व पृ० २०८-२३ ५२८ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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