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एकप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा आदि तेईस वर्गणाओं की प्ररूपणा के समाप्त हो जाने पर एकश्रेणी और नानाश्रेणी के भेद से दो प्रकार की आभ्यन्तर वर्गणा समाप्त हो जाती है। बाह्य वर्गणा
बाह्य वर्गणा का सम्बन्ध औदारिकादि पाँच शरीरों से है। इसकी प्ररूपणा में सूत्रकार ने इन चार अनुयोगद्वारों का निर्देश किया है-शरीरिशरीरप्ररूपणा, शरीरप्ररूपणा, शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा और विस्रसोपचयप्ररूपणा (सूत्र ५,६,११७-१८)। ___ इस प्रसंग में धवला में यह शंका उठायी गयी है कि औदारिकादि पाँच शरीरों की 'बाह्य वर्गणा' संज्ञा कैसे है । इन्द्रिय और मन से ग्रहण के अयोग्य पुद्गलों की 'बाह्य' यह संज्ञा हो, यह तो सम्भव नहीं है, क्योंकि वैसी परिस्थिति में परमाणु आदि वर्गणाओं के भी बाह्यवर्गणात्व का प्रसंग प्राप्त होता है। कारण यह कि वे भी इन्द्रिय और नोइन्द्रिय से अग्राह्य हैं। पर उन्हें आभ्यन्तरवर्गणा के अन्तर्गत ग्रहण किया गया है । पांच शरीर जीवप्रदेशों से भिन्न हैं, इसलिए भी उन्हें 'बाह्य नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि दूध और पानी के समान परस्पर में अनुगत होने से जीव और शरीर के आभ्यन्तर और बाह्यरूपता नहीं बनती है। अनन्तानन्त विस्रसोपचयपरमाणुओं के मध्य में पाँच शरीरों के परमाणु स्थित हैं, इसलिए भी उनकी 'बाह्य' संज्ञा नहीं हो सकती; क्योंकि भीतर-स्थित विस्रसोपचयस्कन्धों की 'बाह्य' संज्ञा का विरोध है। इस परिस्थिति में पांच शरीरों की 'बाह्य वर्गणा' संज्ञा घटित नहीं होती है।
इस शंका का परिहार करते हुए धवला में कहा गया है कि वे पाँच शरीर पूर्वोक्त तेईस वर्गणाओं से भिन्न हैं. इसलिए उनका उल्लेख 'बाह्य' नाम से किया गया है। आगे कहा गया है कि पांच शरीर अचित्त वर्गणाओं के अन्तर्गत तो नहीं हो सकते, क्योंकि साचत्त शरीरों के अचित्त मानने का विरोध है । इसके विपरीत उन्हें सचित्त वर्गणाओं के अन्तर्गत भी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विस्रसोपचयों के बिना पाँच शरीरों के परमाणुओं को ही ग्रहण किया गया है। इसलिए पाँच शरीरों की 'बाह्य वर्गणा' संज्ञा सिद्ध है (पु० १४, पृ० २२३-२४)।
ऊपर बाह्य वर्गणा के अन्तर्गत जिन चार अनुयोगद्वारों का उल्लेख है उनका परिचय धवलाकार ने संक्षेप में इस प्रकार कराया है
(१) शरीरिशरीरप्ररूपणा अनुयोगद्वार में प्रत्येक और साधारण इन दो भेदों में विभक्त जीवों के शरीरों की अथवा प्रत्येक और साधारण लक्षणवाले शरीरधारी जीवों के शरीरों की प्ररूपणा की गयी है, इसीलिए उसका 'शरीरिशरीरप्ररूपणा' यह सार्थक नाम है।
(२) शरीरप्ररूपणा अनुयोगद्वार में पांचों शरीरों के प्रदेशप्रमाण की, उनके प्रदेशों के निषेकक्रम की और प्रदेशों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गयी है।
(३) शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा अनुयोगद्वार में औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस और कार्मण इन पाँच शरीरों के परमाणुओं से सम्बद्ध उक्त पांच शरीरों के विस्रसोपचयसम्बन्ध के कारणभूत स्निग्ध और रूक्ष गुणों के अविभागप्रतिच्छेदों की प्ररूपणा की गयी है।
(४) विस्रसोपचयप्ररूपणा अनुयोगद्वार में जीव से छोड़े गये उन परमाणुओं के विस्रसोपचय की प्ररूपणा की गयी है। शरीरिशरीरप्ररूपणा में ज्ञातव्य शरीरिशरीरप्ररूपणा के प्रसंग में सूत्रकार ने प्रथमतः सात (१२२-२८) सूत्रों में साधारण
षट्लण्डागम पर टीकाएँ । ५२९
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