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६. गति-आगति
यह पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है कि प्रस्तुत 'चूलिका' प्रकरण के प्रारम्भ में जो 'कदि काओ पयडीओ बंधदि' आदि सूत्र आया है उसके अन्त में उपर्युक्त 'चारित्तं वा संपुण्णं पडिवज्जंतस्स' वाक्यांश में प्रयुक्त 'वा' शब्द से इस नवमी 'गति-आगति' चूलिका की सूचना की गयी है। इसके प्रारम्भ में यहाँ धवलाकार ने पुनः स्मरण कराते हुए कहा है कि अब प्रसंगप्राप्त नवमी चूलिका को कहा जाता है । प्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति के कारण
यहाँ सर्वप्रथम सूत्रकार द्वारा सातों पृथिवियों के नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव मिथ्यादृष्टि किस अवस्था में व किन कारणों के द्वारा प्रथम सम्यक्त्व को प्राप्त करते हैं, ४३ सूत्रों में इसका उल्लेख है । इसका परिचय 'मूल ग्रन्थगतविषय-परिचय' में पीछे कराया जा चुका है। विवक्षित गति में मिथ्यात्वादि सापेक्ष प्रवेश-निष्क्रमण ___ यहाँ बत्तीस सूत्रों (४४-७५) में यह विचार किया गया है कि नारकी, तिर्यच, मनुष्य और देव मिथ्यात्व और सम्यक्त्व में से किस गुण के साथ उस पर्याय में प्रविष्ट होते हैं व किस गुण के साथ वे वहां से निकलते हैं । यहाँ यह स्मरणीय है कि सम्यग्मिथ्यात्व में मरण सम्भव नहीं है, इससे उस प्रसंग में सम्यग्मिथ्यात्व का उल्लेख नहीं हुआ है। इसके लिए भी 'मूल ग्रन्थगतविषय-परिचय' को ही देखना चाहिए । अधिक कुछ व्याख्येय तत्त्व यहाँ भी नहीं रहा है । भवान्तर-प्राप्ति
आगे १२७ (७६-२०२) सूत्रों में भवान्तर का उल्लेख है। तदनुसार नारकी, तिर्यच, मनुष्य और देव मिथ्यादष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि उस-उस पर्याय को छोड़कर भवान्तर में किस-किस पर्याय में आते-जाते हैं, यह सब चर्चा भी 'मूल ग्रन्थगत-विषय-परिचय' में द्रष्टव्य है। कहाँ किन गुणों को प्राप्त किया जा सकता है ___अन्त में ४१ (२०३-४३) सूत्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव अपनी-अपनी पर्याय को छोड़कर कहाँ किस अवस्था को प्राप्त करते हैं और वहाँ उत्पन्न होकर वे (१) आभिनिबोधिक ज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्ययज्ञान, (५) केवलज्ञान, (६) सम्यग्मिथ्यात्व, (७) सम्यक्त्व, (८) संयमासंयम, (8) संयम और (१०) अन्तकृत्व (मुक्ति) इनमें से कितने व किन-किन गुणों को उत्पन्न करते हैं व किनको नहीं उत्पन्न करते हैं । इसके अतिरिक्त यहाँ यह भी दिखलाया है कि वहाँ उत्पन्न होकर वे वलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती और तीर्थकर इन पदों में से किसको प्राप्त कर सकते हैं और किसको नहीं। यह सब भी 'मूलग्रन्थगत-विषय-परिचय' से ज्ञातव्य है। ___ इस प्रकार उपर्युक्त नौ चूलिकाओं में इस 'चूलिका' का प्रकरण के समाप्त होने पर पट्खण्डागम का प्रथम खण्ड जीवस्थान समाप्त होता है।
दूसरा खण्ड : क्षुद्रबन्धक इस दूसरे खण्ड में जो 'एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व' आदि ११ अनुयोगद्वार हैं तथा
षट्खण्डागम पर टीकाएँ । ४४७
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