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________________ गुणस्थान भाव सूत्र ९. अनिवृत्तिकरण उपशामक औपशमिक १,७,८ अनिवृत्तिकरण क्षपक क्षायिक १,७,६ १०. सूक्ष्मसाम्परायिक-संयत उपशामक औपशमिक १,७,८ सूक्ष्मसाम्परायिक-संयत क्षपक क्षायिक १,७,६ ११. उपशान्तकषाय औपशमिक १,७,८ १२. क्षीणकषाय क्षायिक १,७,६ १३. सयोगिकेवली १४. अयोगिकेवली मार्गणाओं में गतिमार्गणा (नरकगति) १. मिथ्यादृष्टि औदयिक १,७,१० २. सासादनसम्यग्दृष्टि पारिणामिक १,७,११ ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि क्षायोपशमिक १,७,१२ ४. असंयतसम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक १,७,१३ उसका असंयतत्व औदयिक १,७,१४ (द्वितीयादि पृथिवियों में क्षायिकभाव सम्भव नहीं है-सूत्र १,७,१७) तिर्यंचगति १. मिथ्यादृष्टि औदयिक १,७,१६ २. सासादनसम्यग्दृष्टि पारिणामिक ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि क्षायोपशमिक ४. असंयतसम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक ५. संयतासंयत क्षायोपशमिक (पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियों के क्षायिकभाव सम्भव नहीं है ।--- १,७,२०) मनुष्यगति १-१४ गुणस्थान गुणस्थान सामान्य के समान १,७,२२ देवगति १-४ गुणस्थान गुणस्थान सामान्य के समान । विशेष-१. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देव-देवियों तथा सौधर्म-ईशानकल्पवासिनी देवियों के क्षायिकभाव सम्भव नहीं है (सूत्र १,७,२४-२५) । २. अनुदिशों से लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान तक देवों में एक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान ही होता है (सूत्र १,७,२८)। ___इसी पद्धति से आगे इन्द्रियादि शेष मार्गणाओं में जहाँ जितने गुणस्थान सम्भव हैं उनमें भी भावों को समझा जा सकता है। १,७,२३ ४२६ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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