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________________ है। इसके समाधान में यह कहा गया है कि इस प्रकार की विवक्षा में सम्यग्मिथ्यात्व भले ही क्षायोपशमिक न हो, किन्तु पूर्ण सम्यक्त्वरूप अवयवी के निराकरण और अवयवभूत सम्यक्त्वांश के अनिराकरण की अपेक्षा सम्यग्मिथ्यात्व क्षायोपशमिक व सम्यग्मिथ्यारूप द्रव्यकर्म भी सर्वघाती हो सकता है, क्योंकि जात्यन्तरस्वरूप सम्यग्मिथ्यात्व के सम्यक्त्वरूपता सम्भव नहीं है। किन्तु श्रद्धान का भाग कुछ अश्रद्धान का भाग तो नहीं हो सकता, क्योंकि श्रद्धान और अश्रद्धान के एकरूप होने का विरोध है। उसमें जो श्रद्धान का भाग है वह कर्म के उदय से नहीं उत्पन्न हआ है, क्योंकि उसमें विपरीतता सम्भव नहीं है। उसके विषय में 'सम्यग्मिथ्यात्व' यह नाम भी असंगत नहीं है, क्योंकि जिन नामों का प्रयोग समुदाय में हुआ करता है उनकी प्रवृत्ति उसके एक देश में देखी जाती है। इससे सम्यग्मिथ्यात्व क्षायोपशमिक है, यह सिद्ध है। किन्हीं आचार्यों का यह भी कहना है कि मिथ्यात्व के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय-क्षय व उन्हीं के सदवस्थारूप उपमशम से, सम्यक्त्व के देशघाती स्पर्धकों के उदय-क्षय व उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम अथवा अनुदयरूप उपशम से और सम्यग्मिथ्यात्व के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय से चूंकि वह सम्यग्मिथ्यात्व होता है, इसलिए उस सम्यग्मिथ्यात्व के क्षायोपशमिकरूपता है। इस मत का निराकरण करते हुए धवला में कहा गया है कि उनका उपर्यक्त कथन घटित नहीं होता है, क्योंकि वैसा स्वीकार करने पर मिथ्यात्व के भी क्षायोपशमिकरूपता का प्रसंग प्राप्त होता है। कारण यह है कि सम्यग्मिथ्यात्व के सर्वघाती स्पर्धकों के उदयक्षय व उन्हीं के सदस्थारूप उपशम से, सम्यक्त्व के देशघाती स्पर्धकों के उदय-क्षय व उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम अथवा अनुदयरूप उपशम से तथा मिथ्यात्व के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय से मिथ्यात्व भाव की उत्पत्ति उपलब्ध होती है।' इसी प्रकार से आगे सूत्रकार द्वारा जो असंयतसम्यग्दृष्टि आदि शेष गुणस्थानों और गति-इन्द्रियादि चौदह मार्गणाओं में प्रस्तुत भावों की प्ररूपणा की गयी है उन सबका स्पष्टीकरण धवला में प्रसंगानुसार उसी पद्धति से किया गया है। प्रस्तुत भावानुगम के अनुसार किस गुणस्थान में कौन से भाव सम्भव हैं, इसका दिग्दर्शन यहाँ कराया जाता हैगुणस्थान भाव सूत्र १. मिथ्यादृष्टि औदयिक १,७,२ २. सासादनसम्यग्दृष्टि पारिणामिक १,७,३ ३. सम्यग्मिथ्या दृष्टि क्षायोपशमिक १,७,४ ४. असंयतसम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोप० १,७,५ उसका असंवतत्व औदयिक १,७,६ ५. संयतासंयत क्षायोपशमिक १,७,७ ६. प्रमत्तसंयत ७. अप्रमत्तसंयत ८. अपूर्वकरण उपशामक औपशमिक १,७,८ अपूर्वकरण क्षपक क्षायिक १,७,६ १. धवला पु०५, पृ० १६८-६६ षट्समागम पर टीकाएँ | ४२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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