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________________ ४४७ ४५२ द्वितीयखण्ड : क्षुद्रकबन्ध 'बन्ध कसत्व' व अन्तिम 'महादण्डक' के साथ 'एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व' आदि ११ अनुयोगद्वारों का स्पष्टीकरण चूलिका-महादण्डक तृतीय खण्ड : बन्धस्वामित्वविचय बन्धस्वामित्व का उदगम व उसका स्पष्टीकरण स्वोदय-परोदयबन्ध आदि विषयक २३ प्रश्न तीर्थकर प्रकृति के बन्धक-अबन्धक तीर्थकर प्रकृति के बन्धक कारण ४५३ ४५५ ४५६ ४५८ ४५६ xxur <m.om ४६५ ४६७ ४७१ ४७२ ४७५ चतुर्थ खण्ड : वेदना १. कृति अनुयोगद्वार विस्तृत मंगल के प्रसंग में 'जिन' आदि का विचार अर्थकर्ता महावीर के प्रसंग में उनकी द्रव्य-क्षेत्र आदि से प्ररूपणा आयुविषयक मतभेद ग्रन्थकर्ता गणधर दिव्यध्वनि विषयक विचार गौतम गणधर उत्तरोत्तर तन्त्रकर्ता व पूर्वश्रुत से सम्बन्ध कृतिविषयक प्ररूपणा के प्रसंग में स्वाध्यायविधि का विशेष विचार गणनाकृति के प्रसंग में गणितभेद आदि करणकृति का विचार २. वेदना अनुयोगद्वार (१) वेदना-निक्षेप (२) वेदनानयविभाषणता (३) वेदनानामविधान (४) वेदनाद्रव्य विधान पदमीमांसा आदि तीन अनुयोगद्वार उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट ज्ञानावरण द्रव्यवेदना का स्वामी आयु के बिना अन्य छह कर्मों की द्रव्यवेदना आयु की उत्कृष्ट द्रव्यवेदना ज्ञानावरण आदि की जघन्य-अजन्य द्रव्यवेदना वेदनाद्रव्यविधान से सम्बद्ध यूलिका योगप्ररूपणा ४७७ ४७८ ४८० ४८१ ४८३ ४८४ ४८५ ४६ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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