SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याकरणपटुता न्यायनिपुणता काव्यप्रतिभा धवलागत विषय का परिचय प्रथम खण्ड : जीवस्थान सत्प्ररूपणा मंगल आदि छह अधिकार मंगल, मंगलकर्ता आदि अन्य छह अधिकार भी निर्देश निमित्त का प्रकारान्तर कर्ता — अर्थकर्ता व ग्रन्थकर्ता षट्खण्डागम की रचना कैसे हुई ? जीवस्थान का अवतार ( आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता व अर्थाधिकार ) निक्षेप, नय व अनुगम भावप्रमाण के ५ भेदों में श्रुतभेद जीवस्थानगत चूलिकाओं का उद्गम दर्शनविषयक विचार उपशामन - क्षपण विधि आलाप (बीस प्ररूपणाएँ) Jain Education International द्रव्यप्रमाणानुगम (द्रव्यप्रमाण के साथ लोक आदि की प्रासंगिक चर्चा ) क्षेत्रानुगम में लोकस्थिति का विचार स्पर्शनानुगम (आ० वीरसेन द्वारा स्वयम्भूरमण समुद्र के आगे भी राजु के अर्धच्छेदों के अस्तित्व की सिद्धि) कालानुगम ( दिन व रात्रि के १५-१५ मुहूर्तों का उल्लेख ) अन्तरानुगम भावानुगम अल्पबहुत्वानुगम जीवस्थान - चूलिका ( प्रकृतिसमुत्कीर्तन आदि नौ चूलिकाएँ) (१) प्रकृतिसमुत्कीर्तन (२) स्थानसमुत्कीर्तन (३-५) तीन दण्डक (६) उत्कृष्ट स्थिति ( ७ ) जघन्य स्थिति (८) सम्यक्त्वोत्पत्ति (६) गति - आगति For Private & Personal Use Only ३५४ ३५८ ३६३ ३६४ ३६५ ३६७ ३६७ " ३६८ ३६६ ३७० ३७२ ३७४ ३७६ ३८१ ३८५ ३८८ ४०१ ४०५ ४१२ ४१६ ४२१ ४२७ ४२८ ४२६ ४३० "" ४३१ ४३२ ४३३ ४४७ विषयानुक्रमणिका / ४५ www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy