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________________ अपेक्षा वैसा कहा गया है। पर्यायाथिकनय की अपेक्षा इन पृथिवियों में विशेषता भी है। धवला में उस विशेषता को भी स्पष्ट किया गया है (पु० ४, पृ० ६५-६६) । __क्षेत्रप्रमाणप्ररूपणा का यही क्रम आगे यथासम्भवं तिथंच आदि शेष तीन गतियों में और इन्द्रिय आदि शेष तेरह मार्गणाओं में भी रहा है । ४. स्पर्शनानुगम पूर्वोक्त जीवस्थानगत आठ अनुयोगद्वारों में स्पर्शनानुगम चौथा है। धवलाकार ने यहां प्रथम सूत्र की व्याख्या कर सर्वप्रथम स्पर्शन के ये छह भेद निर्दिष्ट किये हैं-नामस्पर्शन, स्थापनास्पर्शन, द्रव्यस्पर्शन, क्षेत्रस्पर्शन, कालस्पर्शन और भावस्पर्शन। आगे उन्होंने इन सब स्पर्शनभेदों के स्वरूप का भी विवेचन किया है। उनमें से यहाँ जीवक्षेत्रस्पर्शन अधिकृत है।' पूर्व पद्धति के अनुसार धवला में इस स्पर्शन की प्ररूपणा भी प्रथमतः ओघ की अपेक्षा और तत्पश्चात् आदेश की अपेक्षा की गयी है। ___ओघप्ररूपणा--सूत्रकार ने यहाँ सर्वप्रथम मिथ्यादृष्टियों के स्पर्शनक्षेत्र को समस्त लोक बतलाया है। इस सूत्र की व्याख्या में धवलाकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि क्षेत्रानुयोगद्वार में जहाँ सभी मार्गणाओं का आश्रय लेकर सब गुस्थानों के वर्तमान काल सम्बन्धी क्षेत्र की प्ररूपणा की गयी है वहाँ प्रकृत अनुयोगद्वार में उन सभी मार्गणाओं का आश्रय लेकर सभी गुणस्थानों के अतीत काल से सम्बन्धित क्षेत्र की प्ररूपणा की जाने वाली है। क्षेत्रानुयोगद्वार के समान स्पर्शन अनुयोगद्वार में स्वस्थानस्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान तथा वेदनादि सात समुद्घात और उपपाद इन दस पदों के आश्रय से प्रकृत स्पर्शन की भी प्ररूपणा की गयी है तथा लोक से सामान्य लोक आदि वे ही पाँच लोक विवक्षित रहे हैं। लोक का प्रमाण ३४३ धनराजु यहाँ भी अभीष्ट रहा है। ___ सूत्र (१,४,२) में जो मिथ्यादृष्टियों का स्पर्शनक्षेत्र सर्व लोक कहा गया है वह द्रव्याथिकनय की दृष्टि से कहा गया है। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा वह कितना है, इसे स्पष्ट करते हुए धवलाकार ने कहा कि स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय व मारणान्तिक समुद्घात तथा उपपाद इन पदों से परिणत मिथ्यादृष्टियों के द्वारा अतीत और वर्तमान काल में समस्त लोक का स्पर्श किया गया है। विहार वत्स्वस्थान व वैक्रियिक समुद्घात से परिणत उनके द्वारा वर्तमान में सामान्य लोक, अधोलोक और ऊर्ध्व लोक इन तीन का असंख्यातवाँ भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवाँ भाग और अढ़ाईद्वीप से असंख्यात गुणा क्षेत्र स्पर्श किया गया है। धवलाकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अपवर्तना का क्रम यहाँ क्षेत्र के ही समान है। ___अतीत काल में उनके द्वारा चौदह भागों में कुछ कम आठ भाग स्पर्श किये गये हैं। इसका अभिप्राय यह है कि लोक के मध्य में एक राजु के वर्गप्रमाण विस्तृत और चौदह राजु आयत जो त्रसनाली है उसके एक राजु लम्बे-चौड़े चौदह भागों में आठ भागों का उनके द्वारा स्पर्श किया गया है। वे आठ भाग हैं-मेरुतल के नीचे के दो भाग और उससे ऊपर के छह भाग । कारण १. धवला पु० ४, पृ० १४१-४४ २. धवला पु० ४, पृ० १४५-४७ ४०८ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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