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से अनागत उपदेश--- के अनुसार भी उन प्रमत्तसंयतादिकों का प्रमाण बताया गया है । प्रमाण के रूप में यहाँ उस उपदेश की आधारभूत कुछ गाथाओं (५२-५६) को भी उद्धृत किया गया है। ____ आगे धवला में मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानवी जीवों में तथा सिद्धों में भागाभाग और अल्पबहुत्व की भी प्ररूपणा की गयी है।'
आदेश की अपेक्षा द्रव्यप्रमाण
इस प्रकार सामान्य से ओघ की अपेक्षा चौदह गुणस्थानवी जीवों के द्रव्यप्रमाण की प्ररूपणा करके तत्पश्चात् विशेष रूप से गति-इन्द्रियादि चौदह मार्गणाओं में यथाक्रम से जहाँ जितने गुणस्थान सम्भव हैं उनमें जीवों के द्रव्यप्रमाण की प्ररूपणा की गयी है।
तदनुसार यहाँ सर्वप्रथम गति के अनुवाद से नरकगति में वर्तमान मिथ्यादृष्टियों के द्रव्यप्रमाण को सूत्र (१,२,१५) में असंख्यात कहा गया है। उसकी व्याख्या करते हुए धवलाकार ने असंख्यात को अनेक प्रकार का कहकर उसके इन ग्यारह भेदों का उल्लेख किया है-नामअसंख्यात, स्थापना असंख्यात, द्रव्य असंख्यात, शाश्वत असंख्यात, गणना असंख्यात, अप्रशिक असंख्यात, एक असंख्यात, उभय असंख्यात, विस्तार असंख्यात, सर्व असंख्यात और भाव असंख्यात । धवला में इनके स्वरूप का भी पृथक्-पृथक् संक्षेप मे निर्देश कर दिया गया है।
__ इस प्रसंग में नोआगम द्रव्य असंख्यात के ज्ञायकशरीर आदि तीन भेदों में ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्य असंख्यात के स्वरूप का निर्देश करते हुए कहा गया है कि असंख्यात प्राभृत के ज्ञाता का त्रिकालवर्ती शरीर नोआगम-ज्ञायक शरीर-द्रव्य-असंख्यात कहा जाता है। __ यहाँ शंका की गयी है कि आगम से भिन्न शरीर को 'असंख्यात' नाम से कैसे कहा जा सकता है। उत्तर में कहा गया है कि आधार में आधेय के उपचार से वैसा कथन है। जैसेअसि (तलवार) के आधार से असि-धारकों को 'सो तलवारें दौड़ती हैं' ऐसा कहा जाता है। ___ इस प्रसंग में धवलाकार ने 'घृतकुम्भ' के दृष्टान्त को असंगत ठहराया है। घृतकुम्भ और मधुकुम्भ इन दो का दृष्टान्त अनुयोगद्वार में उपलब्ध होता है। ___गणना-संख्यात के प्रसंग में धवलाकार ने उसके स्वरूप का स्वयं कुछ निर्देश न करके यह कह दिया है कि उसकी प्ररूपणा परिकर्म में की गयी है।
___ इन असंख्यात के भेदों में गणना-संख्यात को यहाँ प्रसंगप्राप्त कहा गया है। पीछे जिस प्रकार ओघप्ररूपणा में 'गणनानन्त' के प्रसंग में उसके परीतानन्त आदि के भद-प्रभेदों की
१. धवला पु०३, पृ० ६६-१०१ २. वही, १०१-२१ ३. धवला पु०३, पृ० २१-२५ (इन्हीं शब्दों में पीछे (पृ०११) अनन्त के भी ११ भेदों का
उल्लेख किया गया है। उन अनन्तभेदों की प्ररूपक और इन असंख्यात भेदों की प्ररूपक गाथा समान ही है। विशेष इतना है कि अनन्त के उन भेदों के उल्लेख के प्रसंग में जहाँ गाथा के द्वि० पाद में -अणंत' पाठ है वहाँ इन असंख्यात के भेदों के प्रसंग में तदनुरूप
'-मसंखं' पाठभेद है। ४. अनुयोगद्वार, सूत्र १७
षट्खण्डागम पर टीकाएँ / ३६६
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