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________________ समयों में संचित उपशामकों व क्षपकों का प्रमाण आठ सौ सत्तानब है।' ___इस प्रकार उपशामकों और क्षपकों के प्रमाण के विषय में आचार्यों में परस्पर विशेष मतभेद रहा है। ____ आगे सूत्र (१,२,१३) में जो सयोगिकेवलियों का द्रव्यप्रमाण प्रवेश की अपेक्षा एक, दो, तीन अथवा उत्कर्ष से एक सौ आठ कहा गया है उसे क्षपकों के द्रव्यप्रमाण के समान समझना चाहिए। काल की अपेक्षा उनका द्रव्यप्रमाण सूत्र (१,२,१४) में लक्षपृथक्त्व प्रमाण निर्दिष्ट किया गया है। उसे स्पष्ट करते हुए धवलाकार ने कहा है कि आठ समय अधिक छह मास के भीतर यदि आठ सिद्धसमय प्राप्त होते हैं तो चालीस हजार आठ सौ इकतालीस मात्र आठ समय अधिक छह मास के भीतर कितने सिद्धसमय प्राप्त होंगे, इस प्रकार त्रैराणिक करने पर तीन लाख छब्बीस हजार सात सौ अट्ठाईस मात्र सिद्धसमय प्राप्त होते हैं। इस सिद्धकाल में संचित सयोगि जिनों का प्रमाण लाने के लिए कहा गया है कि उक्त आठ सिद्धसमयों में से छह समयों में तीन-तीन और दो समयों में दो-दो जीव यदि केवलज्ञान को उत्पन्न करते हैं तो आठ समयों में संचित सयोगिजिन बाईस [६३ + (२x२)-२२] होते हैं । अब आठ समयों में यदि बाईस सयोगिजिन होते हैं तो तीन लाख छब्बीस हजार सात सौ अट्ठाईस समयों में कितने सयोगिजिन होंगे, इस प्रकार त्रैराशिक करने पर वे आठ लाख अदानबे हजार पाँच सौ दो (इच्छा ३२६७२८Xफल २२ : प्रमाण ८-८९८५०२) प्राप्त होते हैं। __ आगे धवला में त्रैराशिक प्रक्रिया से प्राप्त सयोगिजिनों के इस प्रमाण को 'वृत्तं च' इस सूचना के साथ उद्धत की गयी एक गाथा के द्वारा प्रमाणित किया गया है। पश्चात यह सचना कर दी गयी है कि इस दिशा के अनुसार कई प्रकार से सयोगि राशि का प्रमाण लाया जा सकता है। उदाहरण देकर उसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि जहां पर पूर्वोक्त सिद्धकाल का आधा मात्र सिद्धकाल हो वहाँ पर इस प्रकार त्रैराशिक करना चाहिए-आठ सिद्धसमयों में यदि चवालीस मात्र सयोगिजिन होते हैं तो एक लाख तिरेसठ हजार तीन सौ चौसठ सिद्धसमयों में कितने सयोगिजिन होंगे, इस प्रकार त्रैराशिक करने पर पूर्वोक्त सयोगिकेवलियों का प्रमाण (इच्छा १६३३६४ X फल ४४ : प्रमाण ८-८९८५०२) प्राप्त होता है । एक अन्य उदाहरण इस प्रकार (इच्छा ८१६८२४ फल ८८ : प्रमाण ८-८९८५०२) भी वहाँ दिया गया है। ___आगे धवला में 'जहाक्खादसंजदाणं पमाणवण्णणागाहा' ऐसी सूचना करते हुए एक गाथा को उद्धृत कर उसके द्वारा यथाख्यातसंयतों का प्रमाण आठ लाख निन्यानब हज़ार नौ सौ सत्तानबै (८६६६६७) बतलाया गया है।। इसी प्रसंग में आगे समस्त संयतों आदि का प्रमाण इस प्रकार निदिष्ट किया गया है(१) समस्त संयत राशि ८६६६६६६७ (२) उपशामक-क्षपक प्रमाण ६०२६८८ १. धवला पू०३, पृ०६२-६५ २. वही, ६७ षट्खण्डागम पर टीकाएँ / ३६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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