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१६, असंयत सम्यग्दृष्टियों का ४, और संयतासंयतों का १२८ है। पल्योपम की कल्पना ६५५३६ की गयी है। इस प्रकार संदृष्टि में सासादन-सम्यग्दृष्टियों आदि का प्रमाण निम्नलिखित प्राप्त होता है'
१. सासादन सम्यग्दृष्टि ६५५३६ : ३२- २०४८ २. सम्यग्मिथ्यादृष्टि ६५५३६ : १६ = ४०६६ ३. असंयत सम्यग्दृष्टि ६५५३६ : ४- १६३८४ ४. संयतासंयत
६५५३६:१२८-५१२ प्रमत्तसंयतों का द्रव्यप्रमाण सूत्र में (१,२,७) कोटिपृथक्त्व निर्दिष्ट किया गया है। इस प्रसंग में धवला में यह शंका की गयी है कि कोटिपृथक्त्व से तीन करोड़ के ऊपर और नौ करोड़ के नीचे जो संख्या हो उसे ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार इस संख्या के विकल्प बहुत हैं, उनमें यहाँ कौन-सी संख्या अभिप्रेत रही है, यह ज्ञात नहीं होता। इसके समाधान में वहाँ यह कहा गया है कि वह संख्या परमगुरु के उपदेश से ज्ञात हो जाती है। आचार्य परम्परागत जिनोपदेश के अनुसार प्रमत्तसंयत पाँच करोड़ तेरानबै लाख अट्टानबै हजार दो सौ छह (५६३६८२०६) हैं। __अप्रमत्तसंयतों का प्रमाण सूत्र (१,२,८) में सामान्य से संख्यात कहा है। धवलाकार ने उसे स्पष्ट करते हुए दो करोड़ छयानबै लाख निन्यानबे हजार एक सौ तीन (२६६६६१०३) कहा है। प्रमाण के रूप वहाँ धवला में 'वुत्तं च' कहकर उपर्युक्त प्रमत्तसंयतों और अप्रमत्तसंयतों के निश्चित प्रमाण की सूचक एक गाथा भी उद्धृत कर दी गयी है। ___चार उपशामकों का प्रमाण सूत्र (१,२,८) में प्रवेश की अपेक्षा एक, दो, तीन अथवा उत्कर्ष से चौवन निर्दिष्ट किया गया है। इसे स्पष्ट करते हुए धवला में कहा गया है कि इन चार उपशामक गुणस्थानों में से एक-एक गुणस्थान में एक समय में चारित्रमोह का उपशम करनेवाला जघन्य से एक जीव प्रविष्ट होता है तथा उत्कर्ष से चौवन तक जीव प्रविष्ट होते हैं। यह सामान्य स्थिति है। विशेष रूप में आठ समय अधिक वर्षपृथक्त्व के भीतर उपशम श्रेणि के योग्य आठ समय होते हैं। उनमें से आठ प्रथम समय में एक जीव को आदि लेकर उत्कर्ष से सोलह तक जीव उपशमश्रेणि पर आरूढ़ होते हैं। द्वितीय समय मे एक जीव को आदि लेकर चौबीस जीव तक उपशमश्रेणि पर आरूढ़ होते हैं। तृतीय समय में एक जीव को आदि लेकर तीस जीव तक उपशम श्रेणि पर- आरूढ़ होते हैं। चतुर्थ समय में एक जीव को आदि लेकर उत्कर्ष से छत्तीस जीव तक उपशम श्रेणि पर आरूढ़ होते हैं । पाँचवें समय में एक जीव को आदि लेकर उत्कर्ष से ब्यालीस जीव तक उपशम श्रेणि पर आरूढ़ होते हैं। छठे समय में एक जीव को आदि लेकर उत्कर्ष से अड़तालीस जीव तक उपशम श्रेणि पर आरूढ़ होते हैं। सातवें व आठवें इन दो समयों में एक जीव को आदि लेकर उत्कर्ष से चौवन-चौवन जीव तक उपशम श्रेणि पर आरूढ़ होते हैं। आगे इस अभिप्राय की पुष्टि हेतु धवला में 'उत्तं च' कहकर एक गाथा उद्धृत कर दी गयी है।
२. धवला पु० ३, पृ० ७८-८७ ३. वही, ८८-८९ ४. वही, ८६-६०
घटखण्डागम पर टीकाएँ / ३६५
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