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निकली हैं ।'
जीवस्थानगत भावानुगम
उन्हीं २४ अनुयोगद्वारों में जो २३वाँ भावानुगम अनुयोगद्वार है उससे जीवस्थान के सत्प्ररूपणादि ८ अनुयोगद्वारों में से ७वाँ भावानुगम अनुयोगद्वार निकला है । *
जीवस्थानगत शेष छह (१,३-६ व ८) अनुयोगद्वार
अव्वोगाढ-उत्तरप्रकृतिबन्ध दो प्रकार का है - भुजगारबन्ध और प्रकृतिस्थानबन्ध । इनमें से दूसरे प्रकृतिस्थानबन्ध में ये आठ अनुयोगद्वार हैं— सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम । इन आठ अनुयोगद्वारों में से जीवस्थानगत ये छह अनुयोगद्वार निकले हैं - सत्प्ररूपणा ( १ ), क्षेत्र प्ररूपणा (३), स्पर्शनप्ररूपणा (४), कालप्ररूपणा (५) अन्तरप्ररूपणा (६) और अल्पबहुत्वप्ररूपणा (८) । इन छह में पूर्वोक्त द्रव्यप्रमाणानुगम और भावानुगम इन दो को मिलाने पर जीवस्थान के आठ अनुयोगद्वार हो जाते हैं । प्रकृतिस्थानबन्ध के उक्त आठ अनुयोगद्वारों से जीवस्थानगत छह अनुयोगद्वार कैसे निकले हैं तथा उनसे द्रव्यप्रमाणानुगम और भावानुगम ये दो अनुयोगद्वार क्यों नहीं निकले, इसे भी धवला में शंका-समाधानपूर्वक स्पष्ट किया है। 3
जघन्यस्थिति (७) व उत्कृष्ट स्थिति (६) चूलिकाओं का उद्गम
स्थितिबन्ध दो प्रकार का है मूलप्रकृतिस्थितिबन्ध और उत्तरप्रकृतिस्थितिबन्ध | इनमें दूसरे उत्तरप्रकृतिस्थितिबन्ध में ये २४ अनुयोगद्वार हैं - अर्धच्छेद, सर्वबन्ध, नोसर्वबन्ध, उत्कृष्टबन्ध, अनुत्कृष्टबन्ध, जघन्यबन्ध, अजघन्यबन्ध, सादिबन्ध, अनादिवन्ध, ध्र ुवबन्ध, अध्रुवबन्ध, बन्धस्वामित्वविचय, बन्धकाल, बन्धअन्तर, बन्धसंनिकर्ष, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, भागाभागानुगम, परिमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम । इनमें अर्धच्छेद दो प्रकार का है— जघन्यस्थितिअर्धच्छेद और उत्कृष्ट स्थितिअर्धच्छेद । इनमें जघन्यस्थितिअर्धच्छेद से जीवस्थान की ७वीं जघन्यस्थिति चूलिका और उत्कृष्टस्थितिअर्धच्छेद से उसकी छठी उत्कृष्टस्थिति चूलिका निकली है ।
सम्यक्त्वोत्पत्ति ( ८ ) व गति - आगति ( ६ ) चूलिकाएँ
बारहवें दृष्टिवाद अंग के परिकर्म आदि पाँच भेदों में दूसरा भेद सूत्र है। उससे वो 'सम्यक्त्वोत्पत्ति' चूलिका निकली है । इसी दृष्टिवाद के उन पाँच भेदों में जो प्रथम भेद परिकर्म है वह चन्द्रज्ञप्ति आदि के भेद से पाँच प्रकार का है। उनमें पाँचवें भेदभूत व्याख्यात्रज्ञप्ति
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१. वही, पृ० १२७ २. व्ही,
३. वही, पृ० १२७-२६
४. धवला पु० १, पृ० १३०
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षट्खण्डागम पर टीकाएँ / ३७५
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