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छेदनपूर्वकं फलभक्षणं स्वयं पतितफलभक्षणं चोद्दिश्य कृष्णलेश्यादयः प्रवर्तन्ते।"
-तत्त्वार्थवार्तिक ४,२२,१०, पृ० १७१ इसी अभिप्राय को जीवकाण्ड में इस प्रकार प्रकट किया गया है ---
पहिया जे छप्पुरिसा परिभट्टारण्णमज्मवेसम्हि । फलभरियरुक्खमेगं पेक्खित्ता विचितंति ॥५०६॥ जिम्मूल-खंध-साहुवसाहं छित्तुं चिणुत्तु पडिदाई।
खाउं फलाइं इदि जं मणेण वयणं हवे कम्मं ॥५०७।। इस प्रकार दोनों ही ग्रन्थों में कृष्णादि छह लेश्यावाले जीवों की जैसी कुछ मानसिक प्रवृत्ति हमा करती है उसका चित्रण यहाँ उदाहरण द्वारा प्रकट किया गया है। इसी प्रकार की समानता दोनों ग्रन्थों में अन्य अधिकारों में भी रही है।
__ 'गति' अधिकार के प्रसंग में समान रूप से दोनों ग्रन्थों में यह कहा गया है कि लेश्या के २६ अंशों में ८ मध्यम अंश आयुबन्ध के कारण तथा शेष १८ अंश तदनुरूप गति के कारण हैं।' यह कहते हुए आगे किस लेश्यांश से जीव देव व नरकगति में कहां-कहां जाता है, इसे स्पष्ट किया गया है। _इस प्रकार देवों व नारकियों में जानेवालों के क्रम को दिखा करके भी जीवकाण्ड में मनुष्यों व तियंचों में जानेवाले देव-नारकियों के विषय में विशेष कुछ स्पष्टीकरण नहीं किया गया है। उनके विषय में तत्त्वार्थवार्तिक में यह सूचना की गई है"देव-नारकाः स्वलेश्याभिः तिर्यड्.मनुष्यानुयोग्यानां यान्ति ।"
-त०वा० ४,२२,१०, पृ० १७२ इसी प्रकार की सूचना जीवकाण्ड में भी इस प्रकार की गई है-- "सुर-णिरया सगलेस्सहिं णर-तिरियं जंति सगजोग्गं ।।" -गाथा ५२७ उत्त०
इस प्रकार की उल्लेखनीय समानता को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि जीवकाण्ड में जो लेश्या की प्ररूपणा की गई है वह सम्भवतः तत्त्वार्थवार्तिक में प्ररूपित लेश्या के आधार पर की गई है।
२६. जीवकाण्ड में आगे सम्यक्त्व मार्गणा के प्रसंग में सम्यक्त्व का स्वरूप प्रकट करते हुए कहा गया है कि जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट छह (द्रव्य), पांच (अस्तिकाय) और नौ प्रकार के पदार्थों का जो आज्ञा अथवा अधिगम से श्रद्धान होता है उसका नाम सम्यक्त्व है। इस प्रकार छह द्रव्यों के विषय में इन सात अधिकारों का निर्देश किया गया है—नाम, उपलक्षणानुवाद, अच्छनकाल (स्थिति), क्षेत्र, संख्या, स्थानस्वरूप और फल । आगे इन सात अधिकारों के आश्रय से क्रमशः छह द्रव्यों की प्ररूपणा करके तत्पश्चात् पाँच अस्तिकाय और नौ पदार्थों का विवेचन किया गया है। इस प्रकार वहाँ यह सम्यक्त्वमार्गणा ६६ (५६०६५८) गाथाओं में समाप्त हुई है। ___ यहाँ स्थानस्वरूप अधिकार के प्रसंग में तेईस परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाओं का नामनिर्देश करते हुए उनमें अपने जघन्य व उत्कृष्ट भेदों के गुणकार व प्रतिभाग को भी प्रकट किया गया है (५६३-६००)
१. तत्त्वार्थवार्तिक २,२२,१० पृ० १७१ तथा जीवकाण्ड गाथा ५१७-१८
३१४ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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