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________________ ष० ख० में गद्यात्मक सूत्र के रूप में अवस्थित है।' ६. जी० का० में आठ सान्तर मार्गणाओं का निर्देश करते हुए उनके अन्तरकाल के प्रमाण को भी प्रकट किया गया है। (१४२-४३) ष० ख० में उन आठ सान्तरमार्गणाओं के अन्तर काल का उल्लेख प्रसंगानुसार इस प्रकार किया गया हैसान्तरमार्गणा अन्तरकाल पु०७, सूत्र १. मनुष्य अपर्याप्त जघन्य एक समय उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग २,६,८-१० २. वैक्रियिक मिश्र का योग जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त २,६,२४-२६ ३. आहार-काययोग जघन्य एक समय उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व २,६,२७-२६ ४. आहार-मिश्रकाययोग ५. सूक्ष्म साम्परायिकसंयत जघन्य एक समय उत्कृष्ट ६ मास २,६,४२-४४ ६. उपशमसम्यग्दृष्टि जघन्य एक समय उत्कृष्ट ७ रात-दिन २,९,५७-५६ ७. सासादनसम्यग्दृष्टि जघन्य एक समय उत्कृष्ट प० का असंख्यातवाँ भाग २,६,६०-६२ ८. सम्यग्मिथ्यादृष्टि इस प्रकार ष० ख० में जो मार्गणाक्रम से नाना जीवों की अपेक्षा उन आठ सान्तरमार्गणाओं के अन्तरकाल का प्रमाण कहा गया है उसी का उल्लेख जी० का० में किया गया है। विशेषता यह रही है कि ष० ख० में जहां यह उल्लेख मार्गणा के अनुसार किया है वहां जीवकाण्ड में गत्यादि मार्गणाओं के नामनिर्देश के अनन्तर दो गाथाओं में एक साथ प्रकट कर दिया गया है, इसी लिए उनमें क्रमभेद भी हुआ है । १०. जीवकाण्ड के इस 'मार्गणा महाधिकार' में जो यथाक्रम से गति-इन्द्रियादि मार्गणाओं की प्ररूपणा की गई है उसका आधार प्रायः ष० ख० की धवला टीका रही है। यही नहीं, प्रसंगानुसार वहाँ धवला में उद्धृत सभी गाथाओं को जीवकाण्ड में ग्रन्थ का अंग बना लिया गया है। इसके अतिरिक्त कषायप्राभृत व मूलाचार की भी कुछ गाथाएँ वहाँ उपलब्ध होती हैं। ऐसी गाथाओं की सूची आगे दी गई है । उसके लिए कुछ उदाहरण यहाँ भी दिये गये हैं (१) जीवकाण्ड में कायमार्गणा के अन्तर्गत वनस्पतिकायिक जीवों की प्ररूपणा के प्रसंग १. सूत्र १,१,४ (पु० १) व २,१,२ (पु०७) । यह गाथा के रूप में मूलाचार (१२-१५६) विशेषावश्यकभाष्य (४०६ नि०) और प्रवचनसारोदार (१३०३) में भी उपलब्ध होता है। ३०६ / पट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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