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संख्या जोड़ने पर ठीक नहीं बैठती।' ___ जीवकाण्ड में उपर्युक्त द्वीन्द्रियादि जीवों के कुलों की संख्या का निर्देश करनेवाली गाथा सम्भवतः प्रतिलिपि करनेवाले की असावधानी से छूट गई है। उन द्वीन्द्रियादि के कुलों की संख्या के सम्मिलित कर देने पर जी. का० में निर्दिष्ट वह समस्त कुलसंख्या भी ठीक बैठ जाती है।
७. जीवकाण्ड के 'पर्याप्ति' अधिकार में आहारादि छह पर्याप्तियों का निर्देश करते हए उनमें से एकेन्द्रियों के चार, विकलेन्द्रियों के पांच और संज्ञियों के छहों पर्याप्तियों का सद्भाव दिखलाया गया है (११८)।
प० ख० में 'सत्प्ररूपणा' अनुयोगद्वार के अन्तर्गत योगमार्गणा के प्रसंग में नामनिर्देश के बिना क्रम से छह पर्याप्तियों व अपर्याप्तियों का सदभाव संज्ञी मिथ्यादष्टि आदि असंयतसम्यगदृष्टि तक, पाँच पर्याप्तियों व अपर्याप्तियों का सद्भाव द्वीन्द्रियादि असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक और चार पर्याप्तियों व अपर्याप्तियों का सदभाव एकेन्द्रियों के प्रकट किया गया है।
(सूत्र १,१,७०-७५) इस प्रकार ष० ख० और जी० का० दोनों ग्रन्थों में पर्याप्तियों का यह उल्लेख समान रूप से किया गया है। विशेष इतना है कि प० ख० में जहाँ उनका उल्लेख संज्ञियों को आदि लेकर किया गया है वहां जी० का० में विपरीत क्रम से एकेन्द्रियों को आदि लेकर किया गया है । पर्याप्तियों के नामों का उल्लेख मूल में नहीं किया गया है, पर धवला में इसके पूर्व इन्द्रिय मार्गणा के प्रसंग में उनके नामों का निर्देश करते हुए स्वरूप आदि को भी स्पष्ट कर दिया गया है।
धवला में वहाँ इस प्रसंग में 'उक्तं च' कहकर 'बाहिरपाणेहि जहा' आदि जिस गाथा को उद्धृत किया गया है वह बिना किसी प्रकार की सूचना के जी० का० में गाथा १२८ के रूप में ग्रन्थ का अंग बना ली गई है। विशेषता यह रही है कि वहां 'जीवंति' के स्थान में 'पाणंति' और 'बोद्धव्वा' के स्थान में 'णिद्दिट्ठा' पाठभेद हो गया है।
८. आगे जी० का० में 'मार्गणा' महाधिकार को प्रारम्भ करते हुए जिस 'गइ-इंदियेसुकाये' (१४१) आदि गाथा के द्वारा चौदह मार्गणाओं के नामों का उल्लेख किया गया है वह
की गई है । वहां पूर्व की दो गाथाएँ मूलाचार से शब्दशः समान हैं। संख्याविषयक मतभेद जी० का० के समान है)
कुलों की यह प्ररूपणा तत्त्वार्थसार (२,११२-१६) में भी उपलब्ध है । वह सम्भवतः मलाचार के आधार से ही की गई है। १. मूलाचार की उस गाथा से जी० का० की गाथा कुछ अंश में समान भी है, पर समस्त संख्या में भेद हो गया है। यथा---
एया य कोडिकोडी णवणवदी-कोडिसदसहस्साई। पण्णासं च सहस्सा संवग्गीणं कुलाण कोडीओ।।-मूला० गाथा ५-२८ एया य कोडिकोडी सत्ताणवदी य सदसहस्साई।
वण्णं कोडिसहस्सा सव्वंगीणं कुलाणं य ।।.-जी०का० ११६ २. धवला पु० १, पृ० २५३-५६
परखण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना /३०५
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