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रूक्षपुद्गल के सदृश स्निग्ध पुद्गल का नाम सम और उनसे असमान का नाम विषम अभीष्ट रहा है।
इस प्रकार परमाणुपुद्गलों के बन्ध के विषय में तत्त्वार्थसूत्र और ष० ख० में कुछ मतभेद रहा है । धवलाकार ने तत्त्वार्थसूत्र के साथ उसका समन्वय करने का कुछ प्रयत्न किया है, ऐसा प्रतीत होता है ।
२२. तत्त्वार्थसूत्र से क्रमप्राप्त आस्रव तत्त्व की प्ररूपणा करते हुए उस प्रसंग में पृथक्पृथक् ज्ञानावरणादि कर्मों के आस्रवों-बन्धक के कारणों का विचार किया गया है।'
षट्खण्डागम में चौथे वेदनाखण्ड के अन्तर्गत दूसरे वेदना अनुयोगद्वार में निर्दिष्ट १६ अधिकारों में ८वा 'वेदनाप्रत्ययविधान' है। उसमें पृथक्-पृथक् ज्ञानावरणादि वेदनाओं के प्रत्ययों (कारणों) की प्ररूपणा की गई है। ___ दोनों ग्रन्थगत उस प्ररूपणा में विशेषता यह रही है कि तत्त्वार्थसूत्र में जहाँ उन ज्ञानावरणादि के कारणों की प्ररूपणा नयविवक्षा के बिना सामान्य से की गई है वहाँ षट्खण्डागम में उनकी वह प्ररूपणा नयविवक्षा के अनुसार की गई है यथा
तत्त्वार्थसूत्र में ज्ञानावरण और दर्शनावरण इन दो कर्मों के आस्रव ज्ञान और दर्शन से सम्बद्ध इस प्रकार निर्दिष्ट हैं- प्रदोष, निह्नव, मात्सर्य, अन्तराय, आसादन और उपधात ।'
उधर षट्खण्डागम में नैगम, व्यवहार और संग्रह इन तीन नयों की अपेक्षा ज्ञानावरणादि आठों कर्मवेदनाओं के ये प्रत्यय निर्दिष्ट किए गए हैं
प्राणातिपात आदि पाँच पाप, रात्रि-भोजन, क्रोध आदि चार कषाय, राग, द्वेष, मोह, प्रेम, निदान, अभ्याख्यान, कलह, पैशून्य, रति, अरति, उपाधि, निकृति, मान (प्रस्थ आदि माप के उपकरण), माय (मेय), मोष (स्त्येय), मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और प्रयोग ।'
ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा प्रकृति-प्रदेशाग्र का कारण योग और स्थिति-अनुभाग का रण कषाय कहा गया है। शब्दनय की अपेक्षा उन्हें अवक्तव्य कहा गया है, क्योंकि उस नय की दृष्टि में पदों के मध्य में समास सम्भव नहीं है।
पखण्डागम में निर्दिष्ट ये कारण व्यापक तो बहुत हैं, पर तत्त्वार्थसूत्र में निर्दिष्ट संक्षिप्त कारणों के द्वारा जिस प्रकार पृथक्-पृथक् उन ज्ञानावरणादि के बन्ध का सरलता से बोध हो जाता है उस प्रकार षट्खण्डागम में निर्दिष्ट उन प्रचुर कारणों से भी वह बोध सरलता से नहीं हो पाता।
इसके अतिरिक्त जिन कारणों का अन्तर्भाव वहीं पर निर्दिष्ट अन्य कारणों में सम्भव है उनका उल्लेख भी पृथक् से किया गया है। जैसे-राग, द्वेष, मोह, प्रेम, रति, अरति, निकृति-ये चार कषायों एवं मिथ्यादर्शन से भिन्न नहीं है-उनके अन्तर्भूत होते हैं । 'मोष'
१. त० सूत्र ६,१०-२७ २. वही, ६-१० (तत्त्वार्थसार में ज्ञानावरण और दर्शनावरण इन दोनों के कारणों का पृथक्___ पृथक् उल्लेख किया गया है-त० सूत्र ४,१३-१६) ३. सूत्र ४,२,८,१-११ (पु० १२, पृ० २७५-८७) ४. वही, १२-१४ ५. वही, १५-१६
बारबड़ागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / १७७
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