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________________ (१४) ध्र वस्कन्धवर्गणा, (१५) सान्तरनिरन्तर द्रव्यवर्गणा, (१६) ध्र वशून्यवर्गणा, (१७) प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा, (१८) ध्र वशून्यद्रव्यवर्गणा, (१६) बादरनिगोदद्रव्यवर्गणा, (२०) ध्र वशून्य वर्गणा, (२१) सूक्ष्म निगोदवर्गणा, (२२) ध्रु वशून्य द्रव्यवर्गणा और (२३) महास्कन्धवर्गणा; इन वर्गणाओं का उल्लेख किया गया है (७६-१७)। .. इनमें द्वि-त्रिप्रदेशिक आदि वर्गणाएँ संख्यातप्रदेशिक वर्गणा के अन्तर्गत हैं। इसी प्रकार परीतप्रदेशिक, अपरीतप्रदेशिक और अनन्तानन्तप्रदेशिक ये तीन अनन्तप्रदेशिक वर्गणा के अन्तर्गत हैं। इस प्रकार इन पांच को उपर्युक्त वर्गणाओं में से कम कर देने पर शेष एक प्रदेशिक वर्गणा, संख्यातप्रदेशिक वर्गणा, असंख्यातप्रदेशिक वर्गणा, अनन्तप्रदेशिक वर्गणा व आहारद्रव्यवर्गणा आदि २३ वर्गणाएँ रहती हैं। २. वर्गणानिरूपणा-इस अनुयोगद्वार में पूर्वोक्त एकप्रदेशिक आदि पुद्गलवर्गणाओं में से प्रत्येक क्या भेद से होती है, संघात से होती है या भेद-संघात से होती है। इसका विचार किया गया है। यथा एक प्रदेशिकवर्गणा द्विप्रदेशिक आदि ऊपर की वर्गणाओं के भेद से होती है। द्विप्रदेशिक वर्गणा ऊपर की द्रव्यों के भेद से और नीचे की द्रव्यों के संघात से तथा स्वस्थान में भेद-संघात से होती है। त्रिप्रदेशी चतःप्रदेशी आदि संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी, परीतप्रदेशी, अपरीतप्रदेशी, अनन्तप्रदेशी और अनन्तानन्तप्रदेशी पुद्गलद्रव्य वर्गणाएँ ऊपर की द्रव्यों के भेद से, नीचे की द्रव्यों के संघात से और स्वस्थान की अपेक्षा भेद-संघात से होती हैं, इत्यादि (१८-११६) । इस प्रकार यह दूसरा 'वर्गणानिरूपणा' अनुयोगद्वार समाप्त हुआ है। पूर्वनिर्दिष्ट (७५) वर्गणाप्ररूपणा-वर्गणानिरूपणादि १४ अनुयोगद्वारों में से मूलग्रन्थकर्ता द्वारा वर्गणाप्ररूपणा और वर्गणानिरूपणा इन दो अनुयोगद्वारों की ही प्ररूपणा की गई है, शेष वर्गणाध्र वाध्र वानुगम अादि १२ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा उन्होंने नहीं की है। ___ इस पर धवला में यह शंका उठाई गई है कि सूत्रकार ने इन दो ही अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा करके शेष बारह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा क्यों नहीं की है। अजानकार होने से उन्होंने उनकी प्ररूपणा न की हो, यह तो सम्भव नहीं है; क्योंकि ग्रन्थकर्ता भगवान् भूतबलि चौबीस अनुयोगद्वाररूप महाकर्म प्रकृतिप्राभूत में पारंगत रहे हैं, इस कारण वे उनके विषय में अजानकर नहीं हो सकते। विस्मरणशील होकर उन्होंने उनकी प्ररूपणा न की हो, यह भी नहीं हो सकता । कारण यह कि प्रमाद से रहित होने के कारण उनके विस्मरणशीलता असम्भव है। ___ हम शंका के समाधान में धवलाकार ने कहा है कि पूर्वाचार्यों के व्याख्यानक्रम के ज्ञापनार्थ उन्होंने उन बारह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा नहीं की है। इस पर पुनः यह शंका की गई है कि अनुयोगद्वार वहीं पर वहाँ के समस्त अर्थ की प्ररूपणा मंक्षिप्त वचनकलाप से क्यों करते हैं । इसके समाधान में वहाँ यह कहा गया है कि वचनयोगरूप ग्रास्रवद्वार से आने-वाले कर्मों के निरोध के लिए संक्षिप्त वचनकलाप से वहाँ के समस्त अर्थ की प्ररूपणा की जाती है। इस शंका-समाधान के साथ आगे धवलाकार ने कहा है कि पूर्वोक्त दो अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा देशामर्शक है, इससे हम उन शेष बारह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा करते हैं, यह कहते हुए उन्होंने आगे धवला में यथाक्रम से उन वर्गणाध्र वाध्र वानुगम व वर्गणासान्तरनिरन्तरा पूलगतग्रन्थ विषय का परिचय / १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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